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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 149
ऋषिः - बिन्दुः पूतदक्षो वा आङ्गिरसः देवता - मरुतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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गौ꣡र्ध꣢यति म꣣रु꣡ता꣣ꣳ श्रव꣣स्यु꣢र्मा꣣ता꣢ म꣣घो꣡ना꣢म् । यु꣣क्ता꣢꣫ वह्नी꣣ र꣡था꣢नाम् ॥१४९॥

स्वर सहित पद पाठ

गौः꣢ । ध꣣यति । मरु꣡ता꣢म् । श्र꣣वस्युः꣢ । मा꣣ता꣢ । म꣣घो꣡ना꣢म् । यु꣣क्ता꣢ । व꣡ह्निः꣢꣯ । र꣡था꣢꣯नाम् ॥१४९॥


स्वर रहित मन्त्र

गौर्धयति मरुताꣳ श्रवस्युर्माता मघोनाम् । युक्ता वह्नी रथानाम् ॥१४९॥


स्वर रहित पद पाठ

गौः । धयति । मरुताम् । श्रवस्युः । माता । मघोनाम् । युक्ता । वह्निः । रथानाम् ॥१४९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 149
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 4;
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पदार्थ -
(मघोनां मरुताम्) ज्ञान धन वाले अध्यात्म याजकों की “मरुत ऋत्विङ्नाम” [निघं॰ ३.१८] (अवस्युः) रक्षणेच्छुक (गौः-माता) इन्द्र परमात्मा गौरूप ज्ञानप्रद माता बनकर (धयति) निजामृतरस पिलाता है (रथानां वह्निः) रथों के वहन करने वाले घोड़े की भाँति रमण साधन योगाङ्गों में युक्त हुई वह गौ माता इस लोक परलोक की सुख यात्रा कराती है।

भावार्थ - भाग्यवान् ज्ञानधनवान् आत्मसमर्पी विद्वानों का रक्षण चाहता हुआ इन्द्र परमात्मा गौ माता बनकर उन्हें निज अमृत रस पिलाता है तथा योगाङ्ग रमणसाधनों से युक्त होकर रथों में जुड़े घोड़े की भाँति इस लोक और परलोक की सुख यात्रा भी कराता है॥५॥

विशेष - ऋषिः—विन्दुः पूतदक्षो वा (सूक्ष्म विवेचनशील या पवित्र ज्ञान बल वाला जन)॥<br>

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