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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1503
ऋषिः - अग्निस्तापसः देवता - विश्वे देवाः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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अ꣢ग्ने꣣ वि꣡श्वे꣢भिर꣣ग्नि꣢भि꣣र्जो꣢षि꣣ ब्र꣡ह्म꣢ सहस्कृत । ये꣡ दे꣢व꣣त्रा꣢꣫ य आ꣣यु꣢षु꣣ ते꣡भि꣢र्नो महया꣣ गि꣡रः꣢ ॥१५०३

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡ग्ने꣢꣯ । वि꣡श्वे꣢꣯भिः । अ꣣ग्नि꣡भिः꣢ । जो꣡षि꣢꣯ । ब्र꣡ह्म꣢꣯ । स꣣हस्कृत । सहः । कृत । ये । दे꣣वत्रा꣢ । ये । आ꣣यु꣡षु꣢ । ते꣡भिः꣢꣯ । नः꣣ । महय । गि꣡रः꣢꣯ ॥१५०३॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्ने विश्वेभिरग्निभिर्जोषि ब्रह्म सहस्कृत । ये देवत्रा य आयुषु तेभिर्नो महया गिरः ॥१५०३


स्वर रहित पद पाठ

अग्ने । विश्वेभिः । अग्निभिः । जोषि । ब्रह्म । सहस्कृत । सहः । कृत । ये । देवत्रा । ये । आयुषु । तेभिः । नः । महय । गिरः ॥१५०३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1503
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(सहस्कृत-अग्ने) ओज२ अध्यात्म तप से उपासित या साक्षात् करणीय ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मन्! तू (विश्वेभिः-अग्निभिः) समस्त तापस—तपस्वी ऋषियों३ द्वारा किए गए (ब्रह्म जोषि) स्तोत्र—स्तुतिमन्त्रों को सेवन करता है (ये-देवत्रा ये-आयुषु) जो देवों में, जीवन्मुक्तों में, जीवन्मुक्तों की श्रेणी में हों, जो मनुष्यों में,४ मनुष्य श्रेणी में हों (तेभिः) उनके समान५ (नः-गिरः-महय) हमारी स्तुतिवाणियों को प्रशंसित कर—सेवन कर॥१॥

विशेष - ऋषिः—तापसोऽग्निः (तपस्वी अग्रणेता उपासक)॥ देवता—विश्वेदेवाः (सर्वदेव गुण वाला परमात्मा)॥ छन्दः—अनुष्टुप्॥<br>

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