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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 151
ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
7
इ꣣ष्टा꣡ होत्रा꣢꣯ असृक्ष꣣ते꣡न्द्रं꣢ वृ꣣ध꣡न्तो꣢ अध्व꣣रे꣢ । अ꣡च्छा꣢वभृ꣣थ꣡मोज꣢꣯सा ॥१५१॥
स्वर सहित पद पाठइ꣣ष्टाः꣢ । हो꣡त्राः꣢꣯ । अ꣣सृक्षत । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । वृ꣣ध꣡न्तः꣢ । अ꣣ध्वरे꣢ । अ꣡च्छ꣢꣯ । अ꣣वभृथ꣢म् । अ꣣व । भृथ꣢म् । ओ꣡ज꣢꣯सा ॥१५१॥
स्वर रहित मन्त्र
इष्टा होत्रा असृक्षतेन्द्रं वृधन्तो अध्वरे । अच्छावभृथमोजसा ॥१५१॥
स्वर रहित पद पाठ
इष्टाः । होत्राः । असृक्षत । इन्द्रम् । वृधन्तः । अध्वरे । अच्छ । अवभृथम् । अव । भृथम् । ओजसा ॥१५१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 151
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 4;
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पदार्थ -
(अध्वरे) अध्यात्म यज्ञ में (इन्द्रं वृधन्तः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा को सम्यक् साक्षात् करने के हेतु (इष्टाः-होत्राः-असृक्षत) अनुकूल या जहाँ तक हो सके आत्मभावनाएँ—स्तुति-प्रार्थनोपासनाएँ हैं, उनको हे उपासको तुम लोग छोड़ो समर्पित करो पुनः (ओजसा) मानस रस से (अवभृथम्-अच्छ) अवभृथ—स्नान को भली प्रकार प्राप्त होओ।
भावार्थ - अध्यात्म यज्ञ—योगानुष्ठान में परमात्मा के साक्षात् करने के हेतु अनुकूल स्तुतिप्रार्थनोपासनाओं को भेंट करो पुनः परमात्मा के सत्संग मानस रस में गोता लगाना चाहिए॥७॥
विशेष - ऋषिः—श्रुतकक्षः (सुना है अध्यात्मकक्ष जिसने ऐसा जन)॥<br>
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