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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1528
ऋषिः - केतुराग्नेयः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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य꣢या꣣ गा꣢ आ꣣क꣡रा꣢महै꣣ से꣡न꣢याग्ने꣣ त꣢वो꣣त्या꣢ । तां꣡ नो꣢ हिन्व म꣣घ꣡त्त꣢ये ॥१५२८॥

स्वर सहित पद पाठ

य꣡या꣢꣯ । गाः । आ꣣क꣡रा꣢महै । आ꣣ । क꣡रा꣢꣯महै । से꣡न꣢꣯या । अ꣣ग्ने । त꣡व꣢꣯ । ऊ꣣त्या꣢ । ताम् । नः꣣ । हिन्व । मघ꣡त्त꣢ये ॥१५२८॥


स्वर रहित मन्त्र

यया गा आकरामहै सेनयाग्ने तवोत्या । तां नो हिन्व मघत्तये ॥१५२८॥


स्वर रहित पद पाठ

यया । गाः । आकरामहै । आ । करामहै । सेनया । अग्ने । तव । ऊत्या । ताम् । नः । हिन्व । मघत्तये ॥१५२८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1528
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन्! (तव यथा-ऊत्या सेनया) तेरी जिस रक्षारूप बन्धनी५—रक्षाबन्धनी के द्वारा (गाः-आकरामहे) ज्ञानवाणियों—उपदेश उक्तियों को हम अङ्गीकार करते हैं—अपनाते हैं—जीवन में ढालते हैं (तां नः-मधत्तये हिन्व) उसे हमें ऐश्वर्य देने के लिये प्रेरित कर॥२॥

विशेष - <br>

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