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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1640
ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
व्या꣢३꣱न्त꣡रि꣢क्षमतिर꣣न्म꣢दे꣣ सो꣡म꣢स्य रोच꣣ना꣢ । इ꣢न्द्रो꣣ य꣡दभि꣢꣯नद्व꣣ल꣢म् ॥१६४०॥
स्वर सहित पद पाठवि । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षम् । अ꣣तिरत् । म꣡दे꣢꣯ । सो꣡म꣢꣯स्य । रो꣣चना꣢ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । यत् । अ꣡भि꣢꣯नत् । व꣣ल꣢म् ॥१६४०॥
स्वर रहित मन्त्र
व्या३न्तरिक्षमतिरन्मदे सोमस्य रोचना । इन्द्रो यदभिनद्वलम् ॥१६४०॥
स्वर रहित पद पाठ
वि । अन्तरिक्षम् । अतिरत् । मदे । सोमस्य । रोचना । इन्द्रः । यत् । अभिनत् । वलम् ॥१६४०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1640
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (सोमस्य मदे) उपासनारस के प्रतीकार में (रोचना ‘रोचनम्’ अन्तरिक्षम्) रुचि करने वाले—कामना वाले उपासक आत्मा को१ (वि-अतिरत्) विशेषरूप से ऊपर चढ़ा देता है या संसार सागर से तरा देता है (यत्-वलम्-अभिनत्) जो आत्मा को घेरने वाले२—बान्धने वाले अज्ञान या राग या भोग को छिन्न-भिन्न कर देता है॥२॥
विशेष - <br>
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