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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1650
ऋषिः - विरूप आङ्गिरसः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
मा꣡ नो꣢ अग्ने महाध꣣ने꣡ परा꣢꣯ वर्ग्भार꣣भृ꣡द्य꣢था । सं꣣व꣢र्ग꣣ꣳ स꣢ꣳ र꣣यिं꣡ ज꣢य ॥१६५०॥
स्वर सहित पद पाठमा꣢ । नः꣣ । अग्ने । महाधने꣢ । म꣣हा । धने꣢ । प꣡रा꣢꣯ । व꣣र्क् । भारभृ꣢त् । भा꣣र । भृ꣢त् । य꣣था । संव꣡र्ग꣢म् । स꣣म् । व꣡र्ग꣢꣯म् । सम् । र꣣यि꣢म् । ज꣢य ॥१६५०॥
स्वर रहित मन्त्र
मा नो अग्ने महाधने परा वर्ग्भारभृद्यथा । संवर्गꣳ सꣳ रयिं जय ॥१६५०॥
स्वर रहित पद पाठ
मा । नः । अग्ने । महाधने । महा । धने । परा । वर्क् । भारभृत् । भार । भृत् । यथा । संवर्गम् । सम् । वर्गम् । सम् । रयिम् । जय ॥१६५०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1650
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(अग्ने) हे ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मन्! तू (महाधने) महान् धन—महती तृप्ति करने वाले मोक्षैश्वर्य मोक्षधाम में (नः) हम उपासकों को (मा परि वर्क्) मत त्यागना (यथा भारभृत्) जैसे राष्ट्र का१३ भरण पालनकर्ता राजा अपनी प्रजा को नहीं त्यागता है (संवर्गं रयिं सञ्जय) संवर्जनीय—त्यागने योग्य पापभोग धन पर सम्यक् जय करा१४ हमें संयमी बना, जैसे राष्ट्रभृत् राजा अपनी प्रजा को पापों से बचाता है॥३॥
विशेष - <br>
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