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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1692
ऋषिः - कलिः प्रागाथः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
6
वृ꣡क꣢श्चिदस्य वार꣣ण꣡ उ꣢रा꣣म꣢थि꣣रा꣢ व꣣यु꣡ने꣢षु भूषति । से꣢꣫मं न꣣ स्तो꣡मं꣢ जुजुषा꣣ण꣢꣫ आ ग꣣ही꣢न्द्र꣣ प्र꣢ चि꣣त्र꣡या꣢ धि꣣या꣢ ॥१६९२॥
स्वर सहित पद पाठवृ꣡कः꣢꣯ । चि꣣त् । अस्य । वारणः꣢ । उ꣣राम꣡थिः꣢ । उ꣣रा । म꣡थिः꣢꣯ । आ । व꣣यु꣡ने꣢षु । भू꣣षति । सा꣢ । इ꣣म꣢म् । नः꣣ । स्तो꣡म꣢꣯म् । जु꣣जुषाणः꣢ । आ । ग꣣हि । इ꣡न्द्र꣢꣯ । प्र । चि꣣त्र꣡या । धि꣣या꣢ ॥१६९२॥
स्वर रहित मन्त्र
वृकश्चिदस्य वारण उरामथिरा वयुनेषु भूषति । सेमं न स्तोमं जुजुषाण आ गहीन्द्र प्र चित्रया धिया ॥१६९२॥
स्वर रहित पद पाठ
वृकः । चित् । अस्य । वारणः । उरामथिः । उरा । मथिः । आ । वयुनेषु । भूषति । सा । इमम् । नः । स्तोमम् । जुजुषाणः । आ । गहि । इन्द्र । प्र । चित्रया । धिया ॥१६९२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1692
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(वृकः-चित्) चोर जन—भीतर कुछ बाहिर कुछ—वास्तविकता को न प्रकट करनेवाला६ कोई (उरामथिः) स्वदोषाच्छाद स्वभाव को मथनेवाला७ जन (वारणः) वरयिता वरनेवाला बनकर८ (अस्य वयुनेषु-आभूषति) इस परमात्मा के प्रज्ञानों—गुण सङ्केतों—गुणगानों में अपने को समन्तरूप से अलङ्कृत करता है—सजाता है (सः) वह तू (इन्द्र) परमात्मन् (नः) हमारे (इमं स्तोमं जुजुषाणः) इस स्तुतिसमूह को सेवन करने के हेतु (चित्रया धिया) विचित्र—चमत्कारी अपनी कृति एवं बुद्धि से (प्र-आगहि) प्राप्त हो॥२॥
विशेष - <br>
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