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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 231
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनोऽभीपाद् उदलो वा देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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ए꣡न्द्र꣢ पृ꣣क्षु꣡ कासु꣢꣯ चिन्नृ꣣म्णं꣢ त꣣नू꣡षु꣢ धेहि नः । स꣡त्रा꣢जिदुग्र꣣ पौ꣡ꣳस्य꣢म् ॥२३१

स्वर सहित पद पाठ

आ꣢ । इ꣣न्द्र । पृक्षु꣢ । का꣡सु꣢꣯ । चि꣣त् । नृम्ण꣢म् । त꣣नू꣡षु꣢ । धे꣣हि । नः । स꣡त्रा꣢꣯जित् । स꣡त्रा꣢꣯ । जि꣣त् । उग्र । पौँ꣡स्य꣢꣯म् ॥२३१॥


स्वर रहित मन्त्र

एन्द्र पृक्षु कासु चिन्नृम्णं तनूषु धेहि नः । सत्राजिदुग्र पौꣳस्यम् ॥२३१


स्वर रहित पद पाठ

आ । इन्द्र । पृक्षु । कासु । चित् । नृम्णम् । तनूषु । धेहि । नः । सत्राजित् । सत्रा । जित् । उग्र । पौँस्यम् ॥२३१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 231
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 12;
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पदार्थ -
पदार्थ—(सत्राजित्-उग्र) हे सत्यस्वरूप से जीतनेवाले “सत्रा सत्यनाम” [निघं॰ ३.१०] या सबको वश में करने वाले “सर्वं वै सत्रम्” [श॰ ४.६.१.२५] तेजस्वी (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! (कासु चित् पृक्षु) किन्हीं अभीष्ट संयमन क्रियाओं में उन्हें साधने के लिये “पृच् संयमने” [चुरादि॰] (नः) हमारे (तनूषु) देहों में (पौंस्यम्-नृम्णम्-आ धेहि) आत्मीय बल—आत्मबल का आधान कर “नृम्णं बलनाम” [निघं॰ २.९]।

भावार्थ - सत्यस्वरूप सबको जीतने वाले या सब जड़ जङ्गम को स्ववश करने वाले तेजस्वी ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! किन्हीं संयम क्रियाओं के—निमित्त हमारी देहों में आत्मबल का आधान कर जिससे अपने जीवन को संसार सम्पर्क से ऊँचे उठा तेरी ओर चलें॥९॥

विशेष - ऋषिः—विश्वामित्रो गाथिनोभीपाद उदलो वा (सर्वमित्र वेदाचार्य या सब भीतियों—भयों को पाद के नीचे करके ऊपर गतिशील दृढ़ निश्चयी)॥<br>

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