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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 236
ऋषिः - नोधा गौतमः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
3
तं꣡ वो꣢ द꣣स्म꣡मृ꣢꣫ती꣣ष꣢हं꣣ व꣡सो꣢र्मन्दा꣣न꣡मन्ध꣢꣯सः । अ꣣भि꣢ व꣣त्सं꣡ न स्वस꣢꣯रेषु धे꣣न꣢व꣣ इ꣡न्द्रं꣢ गी꣣र्भि꣡र्न꣢वामहे ॥२३६॥
स्वर सहित पद पाठत꣢म् । वः꣣ । दस्म꣢म् । ऋ꣣तीष꣡ह꣢म् । ऋ꣣ति । स꣡ह꣢꣯म् । व꣡सोः꣢꣯ । म꣣न्दान꣢म् । अ꣡न्ध꣢꣯सः । अ꣣भि꣢ । व꣣त्स꣢म् । न । स्व꣡स꣢꣯रेषु । धे꣣न꣡वः꣣ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । गी꣣र्भिः꣢ । न꣣वामहे ॥२३६॥
स्वर रहित मन्त्र
तं वो दस्ममृतीषहं वसोर्मन्दानमन्धसः । अभि वत्सं न स्वसरेषु धेनव इन्द्रं गीर्भिर्नवामहे ॥२३६॥
स्वर रहित पद पाठ
तम् । वः । दस्मम् । ऋतीषहम् । ऋति । सहम् । वसोः । मन्दानम् । अन्धसः । अभि । वत्सम् । न । स्वसरेषु । धेनवः । इन्द्रम् । गीर्भिः । नवामहे ॥२३६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 236
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
(वः) हे उपासको! तुम्हारे और हमारे (ऋतीषहम्) निन्दनीय भावनाओं को अभिभूत करने वाले (वसोः—अन्धसः) हमारे अन्दर वसे उपासनारस से (मन्दानम्) हम पर हर्षित होने वाले (दस्मम्) दर्शनीय “दस दर्शने” [चुरा॰] (तम्-इन्द्रम्) उस ऐश्वर्यवान् परमात्मा को (गीर्भिः) वाणियों—स्तुतियों से (अभि नवामहे) तुम हम सब प्रशंसित करते हैं—उसका रुचि से स्मरण-चिन्तन करते हैं (स्वसरेषु धेनवः-वत्सं न) गोसदनों में आ जाने पर दूध देने वाली गायें बछड़े का जैसे रुचि से स्मरण करती हैं “स्वसराणि गृहाणि” [निघं॰ ३.४]।
भावार्थ - परमात्मा हम सब उपासकों से निन्दनीय भावनाओं को दूर करने वाला है और दर्शनीय है हमारे अन्दर बसे हुए उपासनारस से जब हम उसे अर्पित करते हैं तो वह हम पर हर्षित होते हैं तथा हमें भी हर्ष प्रदान करते हैं उस ऐसे परमात्मा को अपनी स्तुति वाणियों से प्रशंसित करते हैं—स्मरण करते हैं—जैसे दूध देने वाली गायें अपने बछड़े को गोसदनों में रुचि से स्मरण करती हैं॥४॥
टिप्पणी -
[*18. “नोधा नवनं दधाति” [नि॰ ४.१६]।]
विशेष - ऋषिः—नोधाः (नवन-स्तवन का धारक उपासक*18)॥<br>
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