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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 25
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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अ꣡ग्ने꣢ यु꣣ङ्क्ष्वा꣡ हि ये तवाश्वा꣢꣯सो देव सा꣣ध꣡वः꣢ । अ꣢रं꣣ व꣡ह꣢न्त्या꣣श꣡वः꣢ ॥२५॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡ग्ने꣢꣯ । यु꣣ङ्क्ष्वा꣢ । हि । ये । त꣡व꣢꣯ । अ꣡श्वा꣢꣯सः । दे꣣व । साध꣡वः꣢ । अ꣡र꣢꣯म् । व꣡ह꣢꣯न्ति । आ꣣श꣡वः꣢ ॥२५॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्ने युङ्क्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः । अरं वहन्त्याशवः ॥२५॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्ने । युङ्क्ष्वा । हि । ये । तव । अश्वासः । देव । साधवः । अरम् । वहन्ति । आशवः ॥२५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 25
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3;
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पदार्थ -
(अग्ने देव) हे ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मदेव! (ये तव साधवः-आशवः—अश्वासः) जो तेरे साधु—कल्याणसाधक संसार में व्यापने वाले कर्तृत्व नियन्तृत्व आदि गुणधर्म घोड़ों के समान ‘अत्र लुप्तोपमेयोपमानोपमावाचकालङ्कारः’ मेरे मन रूप रथ को मोक्षधाम की ओर वहन करने वाले (अरं वहन्ति) पूर्ण रूप से वहन करें—पहुँचावें (युङ्क्ष्व हि) इन्हें अवश्य जोड़।

भावार्थ - परमात्मदेव मेरी यात्रा के दो क्षेत्र या दो स्थान हैं, एक तो संसार भोगस्थान जिसकी ओर ले जाने वाले शरीररथ में इन्द्रियाँ घोड़े हैं “इन्द्रियाणि हयानाहुः” [कठो॰ १.३.४] जो जहाँ तहाँ भटकाते हैं संकट तक में डालते हैं। दूसरा है यात्रा का मोक्षधाम अपवर्ग स्थान जिसकी ओर ले जाने वाले मनोरथ में जुड़ने वाले तेरे संसारव्यापी कर्तृत्व नियन्तृत्व आदि घोड़े जिनका मनन मन में निरन्तर होने से मनोरथ को मोक्षधाम की ओर ले जाते हैं, कृपया उन्हें मेरे मनोरथ में जोड़ वहाँ मैं अमृत आनन्द प्राप्त करूँ॥५॥

विशेष - ऋषिः—भरद्वाजः (परमात्मा के अर्चन ज्ञान बल को अपने अन्दर धारण करने वाला)॥<br>

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