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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 319
ऋषिः - गौरिवीतिः शाक्त्यः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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व꣡यः꣢ सुप꣣र्णा꣡ उ꣢꣯प सेदु꣣रि꣡न्द्रं꣢ प्रि꣣य꣡मे꣢धा꣣ ऋ꣡ष꣢यो꣣ ना꣡ध꣢मानाः । अ꣡प꣢ ध्वा꣣न्त꣡मू꣢र्णु꣣हि꣢ पू꣣र्धि꣡ चक्षु꣢꣯र्मुमु꣣ग्ध्या꣢३꣱स्मा꣢न्नि꣣ध꣡ये꣢व ब꣣द्धा꣢न् ॥३१९॥

स्वर सहित पद पाठ

व꣡यः꣢꣯ । सु꣣पर्णाः । सु꣣ । पर्णाः꣢ । उ꣡प꣢꣯ । से꣣दुः । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । प्रि꣣य꣡मे꣢धाः । प्रि꣣य꣢ । मे꣣धाः । ऋ꣡ष꣢꣯यः । ना꣡ध꣢꣯मानाः । अ꣡प꣢꣯ । ध्वा꣣न्त꣢म् । ऊ꣣र्णुहि꣢ । पू꣣र्धि꣢ । च꣡क्षुः꣢ । मु꣣मुग्धि꣢ । अ꣣स्मा꣢न् । नि꣣ध꣡या꣢ । नि꣣ । ध꣡या꣢꣯ । इ꣣व । बद्धा꣢न् ॥३१९॥


स्वर रहित मन्त्र

वयः सुपर्णा उप सेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः । अप ध्वान्तमूर्णुहि पूर्धि चक्षुर्मुमुग्ध्या३स्मान्निधयेव बद्धान् ॥३१९॥


स्वर रहित पद पाठ

वयः । सुपर्णाः । सु । पर्णाः । उप । सेदुः । इन्द्रम् । प्रियमेधाः । प्रिय । मेधाः । ऋषयः । नाधमानाः । अप । ध्वान्तम् । ऊर्णुहि । पूर्धि । चक्षुः । मुमुग्धि । अस्मान् । निधया । नि । धया । इव । बद्धान् ॥३१९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 319
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 9;
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पदार्थ -
(वयः सुपर्णाः) ऊँची गति वाले पुरुष अर्थात् उपासक सत्पुरुष “पुरुष- सुपर्णः” [श॰ ७.४.२.५] (प्रियमेधाः-ऋषयः) परमात्मा की सङ्गति प्रिय जिनको है ऐसे “मेधृ सङ्गमे” [भ्वादि॰] ऋषि महानुभाव (नाधमानाः) यह याचना करने के हेतु (इन्द्रम्-उपसेदुः) परमात्मा को ध्यान में प्राप्त हुए—प्राप्त होते हैं (ध्वान्तम्-अप-ऊर्णुहि) कि परमात्मन्! तू अज्ञान अन्धकार को हटा दे (चक्षुः-पूर्धि) अपने ज्ञानप्रकाश से ज्ञाननेत्र को भर दे (अस्मान्-निधया-इव बद्धान् मुमुग्धि) हमें पाशसमूह की भाँति संसारपाश में बन्धे हुओं को अब छोड़ दे।

भावार्थ - प्रगतिशील सत्पुरुष परमात्मा की सङ्गति ही जिन्हें प्रिय है ऐसे ऋषिजन ध्यान में परमात्मा को प्राप्त हो यही याचना किया करते हैं कि परमात्मन्! तू हमारे आज्ञानान्धकार को मिटा अपने ज्ञानप्रकाश से हमारे ज्ञाननेत्र भर दे और पाश में बन्धे जैसे हमें संसार बन्धन से छोड़ अपने मुक्तिसदन में ले ले। परमात्मन्! ऐसे सत्पुरुषों को तू अपनी कृपा से उन्हें मुक्ति प्रदान करता है॥७॥

विशेष - ऋषिः—गौरीवीतिः शाक्त्यः (ब्रह्मवर्चस्तेज का सम्पादक शक्ति से सम्पन्न जन*24)॥<br>

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