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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 350
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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ए꣢तो꣣ न्वि꣢न्द्र꣣ꣳ स्त꣡वा꣢म शु꣣द्ध꣢ꣳ शु꣣द्धे꣢न꣣ सा꣡म्ना꣢ । शु꣣द्धै꣢रु꣣क्थै꣡र्वा꣢वृ꣣ध्वा꣡ꣳस꣢ꣳ शु꣣द्धै꣢रा꣣शी꣡र्वा꣢न्ममत्तु ॥३५०॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । इ꣣त । उ । नु꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । स्त꣡वा꣢꣯म । शु꣣द्ध꣢म् । शु꣣द्धे꣡न꣢ । सा꣡म्ना꣢꣯ । शु꣣द्धैः꣢ । उ꣣क्थैः꣢ । वा꣣वृध्वाँ꣡स꣢म् । शु꣣द्धैः꣢ । आ꣣शी꣡र्वा꣢न् । आ꣣ । शी꣡र्वा꣢꣯न् । म꣣मत्तु ॥३५०॥
स्वर रहित मन्त्र
एतो न्विन्द्रꣳ स्तवाम शुद्धꣳ शुद्धेन साम्ना । शुद्धैरुक्थैर्वावृध्वाꣳसꣳ शुद्धैराशीर्वान्ममत्तु ॥३५०॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । इत । उ । नु । इन्द्रम् । स्तवाम । शुद्धम् । शुद्धेन । साम्ना । शुद्धैः । उक्थैः । वावृध्वाँसम् । शुद्धैः । आशीर्वान् । आ । शीर्वान् । ममत्तु ॥३५०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 350
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 12;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 12;
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पदार्थ -
(एत-नु-उ) हे उपासको! आओ शीघ्र तुम और हम सब अवश्य (शुद्धम्-इन्द्रम्) पापसम्पर्करहित अपितु शुभ गुणवाले परमात्मा की (शुद्धेन साम्ना) निष्पाप अपितु शुभगुणमय शिव साधुगान से “यच्च वै शिवं शान्तं वाचस्तत् साम” [जै॰ ३.५.५२] (स्तवाम) स्तुति करें, तथा (शुद्धैः-उक्थैः) अनृत आदि दोषों से रहित अपितु ऋजु सत्य आदि धर्मयुक्त वाक्—वाणियों से “वागुक्थम्” [ष॰ १.५] (वावृध्वांसम्) बढ़ते-बढ़ाते हुए—प्रसन्न होते करते हुए परमात्मा की स्तुति करें जिससे (शुद्धैः-आशीर्वान्-ममत्तु) वह हमारी शुद्ध—पवित्र आशीः—इच्छाओं प्रार्थनाओं से आशाओं वाला कामनाओं को देनेवाला प्रसन्न हो।
भावार्थ - परमात्मा हमारी आशाओं कामनाओं को पूरा करता है परन्तु उस पवित्र की पवित्र, शान्त, शिवरूप, साधुभाव भरे वचन से तथा अनृत आदि दोषरहित आचरणों से स्तुति करेंगे तो वह बढ़ने बढ़ाने वाला होकर हमारी पवित्र प्रार्थनाओं से हमारी कामना पूर्ण करनेवाला हुआ प्रसन्नता को प्राप्त करता है॥९॥
विशेष - ऋषिः—विश्वामित्रः (सबका मित्र और सब जिसके मित्र हैं ऐसा उपासक)॥<br>
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