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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 416
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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उ꣢पो꣣ षु꣡ शृ꣢णु꣣ही꣢꣫ गिरो꣣ म꣡घ꣢व꣣न्मा꣡त꣢था इव । क꣣दा꣡ नः꣢ सू꣣नृ꣡ता꣢वतः꣣ क꣢र꣣ इ꣢द꣣र्थ꣡या꣢स꣣ इद्यो꣢꣫जा꣣꣬ न्वि꣢꣯न्द्र ते꣣ ह꣡री꣢ ॥४१६॥
स्वर सहित पद पाठउ꣡प꣢꣯ । उ꣣ । सु꣢ । शृ꣣णुहि꣢ । गि꣡रः꣢꣯ । म꣡घ꣢꣯वन् । मा । अ꣡त꣢꣯थाः । इ꣣व । कदा꣢ । नः꣣ । सूनृ꣡ता꣢वतः । सु꣣ । नृ꣡ता꣢꣯वतः । क꣡रः꣢꣯ । इत् । अ꣣र्थ꣡या꣢से । इत् । यो꣡ज꣢꣯ । नु । इ꣣न्द्र । ते । ह꣢री꣣इ꣡ति꣢ ॥४१६॥
स्वर रहित मन्त्र
उपो षु शृणुही गिरो मघवन्मातथा इव । कदा नः सूनृतावतः कर इदर्थयास इद्योजा न्विन्द्र ते हरी ॥४१६॥
स्वर रहित पद पाठ
उप । उ । सु । शृणुहि । गिरः । मघवन् । मा । अतथाः । इव । कदा । नः । सूनृतावतः । सु । नृतावतः । करः । इत् । अर्थयासे । इत् । योज । नु । इन्द्र । ते । हरीइति ॥४१६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 416
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 7;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 7;
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पदार्थ -
(मघवन्) हे ऐश्वर्यरूप मोक्षधनवन्! तू (गिरः) स्तुति प्रार्थनाओं को (उ) अवश्य (सु) भली प्रकार (उप शृणुहि) स्वीकार कर (अतथा-इव मा) अन्यथारूप—उपेक्षा से नहीं (कदा नः) कब हमें (सुनृतावतः करः) अच्छी स्तुति वाले—सफल स्तुति वाले करता है (इत्) इतनी (अर्थयासे-इत्) प्रार्थना स्वीकार करता है ही (इन्द्र ते हरी नु योज) अतः परमात्मन्! अपने दया और प्रसाद धर्म मेरे अन्दर युक्त कर दे।
भावार्थ - मोक्षैश्वर्यवान् परमात्मा हमारी स्तुतियों को स्वीकार करता है उनकी उपेक्षा नहीं करता है अपितु वास्तविकता से, परन्तु सफलस्तुति वाले हमें कब बना देगा? कभी तो बनाएगा, वह दुःखापहरणकर्ता और सुखाहरणकर्ता अपने दया और प्रसाद धर्मों को हमारे अन्दर युक्त कर देगा, तब सब सुन्दर हो जावेगा॥८॥
विशेष - ऋषिः—गोतमः (परमात्मा में अत्यन्त गतिमान्)॥<br>
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