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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 455
ऋषिः - आत्रेयः देवता - विश्वेदेवाः छन्दः - द्विपदा त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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ऊ꣣र्जा꣢ मि꣣त्रो꣡ वरु꣢꣯णः पिन्व꣣ते꣢डाः꣣ पी꣡व꣢री꣣मि꣡षं꣢ कृणु꣣ही꣡ न꣢ इन्द्र ॥४५५

स्वर सहित पद पाठ

ऊ꣣र्जा꣢ । मि꣣त्रः꣢ । मि꣣ । त्रः꣢ । व꣡रु꣢꣯णः । पि꣣न्वत । इ꣡डाः꣢꣯ । पी꣡व꣢꣯रीम् । इ꣡ष꣢꣯म् । कृ꣣णुहि꣢ । नः꣣ । इन्द्र ॥४५५॥


स्वर रहित मन्त्र

ऊर्जा मित्रो वरुणः पिन्वतेडाः पीवरीमिषं कृणुही न इन्द्र ॥४५५


स्वर रहित पद पाठ

ऊर्जा । मित्रः । मि । त्रः । वरुणः । पिन्वत । इडाः । पीवरीम् । इषम् । कृणुहि । नः । इन्द्र ॥४५५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 455
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 11;
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पदार्थ -
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! तू (मित्रः) स्नेहीरूप (वरुण) वरने वाला होता हुआ तीनों रूपों वाले (ऊर्जा) अपने आर्द्र आनन्दरस से (इडाः) संसार के सुखभोगों को “इडा वा इदं सर्वम्” [मै॰ ४.२.२] (पिन्वत) सींचो (नः) हमारे लिये (पीवरीम्-इषं कृणुहि) पुष्ट—पुष्कल एषणीय मोक्षसुख को कर—प्रदान कर।

भावार्थ - स्नेह करने वाला, वरने वाला, ऐश्वर्य वाला परमात्मा संसार के सब भोगसुखों को अपने आर्द्र आनन्दरस से सींच दे परिपूर्ण कर दे और पुष्कल इच्छित मोक्षसुख से भी हमें सम्पन्न कर दे॥९॥

विशेष - ऋषिः—आत्रेयः (तीनों तापों से पृथक् परमानन्द का सेवन करने वाला)॥ देवता—विश्वे देवाः॥<br>

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