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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 481
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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इ꣡न्दुः꣢ पविष्ट꣣ चे꣡त꣢नः प्रि꣣यः꣡ क꣢वी꣣नां꣢ म꣣तिः꣢ । सृ꣣ज꣡दश्व꣢꣯ꣳ र꣣थी꣡रि꣢व ॥४८१॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्दुः꣢꣯ । प꣣विष्ट । चे꣡त꣢꣯नः । प्रि꣣यः꣢ । क꣣वीना꣢म् । म꣣तिः꣢ । सृ꣣ज꣢त् । अ꣡श्व꣢꣯म् । र꣣थीः꣢ । इ꣣व ॥४८१॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्दुः पविष्ट चेतनः प्रियः कवीनां मतिः । सृजदश्वꣳ रथीरिव ॥४८१॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्दुः । पविष्ट । चेतनः । प्रियः । कवीनाम् । मतिः । सृजत् । अश्वम् । रथीः । इव ॥४८१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 481
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
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पदार्थ -
(चेतनः) चेताने वाला (प्रियः) स्नेही (कवीनां मतिः) मेधावी उपासकों का स्तुत्य (इन्दुः) परमात्मा (रथीः-इव-अश्वम्) रथ स्वामी जैसे घोड़े को (असृजत्) अच्छा बनाता है—साधता है, ऐसे मुझ उपासक को अच्छा बना या उपासना मार्ग पर चला।
भावार्थ - चेताने वाला, स्नेही, मेधावी उपासकों का स्तुति योग्य परमात्मा उपासक को जैसे रथ स्वामी घोड़े को साधता है, चलाता है, ऐसे साधता—सिद्ध बनाता, उपासना मार्ग पर चलाता है॥५॥
टिप्पणी -
[*36. “कश्यपः पश्यको भवति” [तै॰ आ॰ १.८.८]।]
विशेष - ऋषिः—कश्यपः (द्रष्टा*36—सावधान उपासक)॥<br>
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