Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 482
ऋषिः - कश्यपो मारीचः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
3

अ꣡सृ꣢क्षत꣣ प्र꣢ वा꣣जि꣡नो꣢ ग꣣व्या꣡ सोमा꣢꣯सो अश्व꣣या꣢ । शु꣣क्रा꣡सो꣢ वीर꣣या꣡शवः꣢꣯ ॥४८२॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡सृ꣢꣯क्षत । प्र । वा꣣जि꣡नः꣢ । ग꣣व्या꣢ । सो꣡मा꣢꣯सः । अ꣣श्वया꣢ । शु꣣क्रा꣡सः꣢ । वी꣣रया꣢ । आ꣣श꣡वः꣢ ॥४८२॥


स्वर रहित मन्त्र

असृक्षत प्र वाजिनो गव्या सोमासो अश्वया । शुक्रासो वीरयाशवः ॥४८२॥


स्वर रहित पद पाठ

असृक्षत । प्र । वाजिनः । गव्या । सोमासः । अश्वया । शुक्रासः । वीरया । आशवः ॥४८२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 482
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
Acknowledgment

पदार्थ -
(वाजिनः) बलवान्—(शुक्रासः) शुभ्र—(आशवः) व्यापक—व्यापने वाले—(सोमासः) आनन्दधारा में प्राप्त होने वाले परमात्मन्! ‘सर्वत्र बहुवचनमादरार्थम्’ (गव्या) हमारी इन्द्रियों सम्बन्धी इच्छा से “अश्वो वै बृहद् वयः” [श॰ ३.२.६.१५] (वीरया) प्राणों की इच्छा से “प्राणा वै दशवीराः” [श॰ १२.८.१.२२] (प्रासृक्षत) हमें प्राप्त हो “सृक्ष गतौ” [भ्वादि॰]।

भावार्थ - हे बलवान् शुभ्र विभु आनन्दधारा में प्राप्त होने वाले शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू हमारी इन्द्रियों की साधने की इच्छा, से हमारी बड़ी अवस्था को सम्पन्न करने की इच्छा से, हमारे प्राणों के साधने की इच्छा से, मुझ उपासक को प्राप्त हो॥६॥

विशेष - ऋषिः—कश्यपः (द्रष्टा—सावधान उपासक)॥<br>

इस भाष्य को एडिट करें
Top