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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 562
ऋषिः - वसुर्भारद्वाजः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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अ꣡सा꣢वि꣣ सो꣡मो꣢ अरु꣣षो꣢꣫ वृषा꣣ ह꣢री꣣ रा꣡जे꣢व द꣣स्मो꣢ अ꣣भि꣡ गा अ꣢꣯चिक्रदत् । पु꣣नानो꣢꣫ वार꣣म꣡त्ये꣢ष्य꣣व्य꣡य꣢ꣳ श्ये꣣नो꣡ न योनिं꣢꣯ घृ꣣त꣡व꣢न्त꣣मा꣡स꣢दत् ॥५६२॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡सा꣢꣯वि । सो꣡मः꣢꣯ । अ꣣रुषः꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । ह꣡रिः꣢꣯ । रा꣡जा꣢꣯ । इ꣣व । दस्मः꣢ । अ꣣भि꣢ । गाः । अ꣣चिक्रदत् । पुनानः꣢ । वा꣡र꣢꣯म् । अ꣡ति꣢꣯ । ए꣣षि । अव्य꣡य꣢म् । श्ये꣣नः꣢ । न । यो꣡नि꣢꣯म् । घृ꣣त꣡व꣢न्तम् । आ । अ꣣सदत् ॥५६२॥
स्वर रहित मन्त्र
असावि सोमो अरुषो वृषा हरी राजेव दस्मो अभि गा अचिक्रदत् । पुनानो वारमत्येष्यव्ययꣳ श्येनो न योनिं घृतवन्तमासदत् ॥५६२॥
स्वर रहित पद पाठ
असावि । सोमः । अरुषः । वृषा । हरिः । राजा । इव । दस्मः । अभि । गाः । अचिक्रदत् । पुनानः । वारम् । अति । एषि । अव्ययम् । श्येनः । न । योनिम् । घृतवन्तम् । आ । असदत् ॥५६२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 562
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 9;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 9;
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पदार्थ -
(सोमः) शान्तस्वरूप परमात्मा (अरुषः) आरोचमानरूप में “अरुषीरारोचमानात्” [निरु॰ १२.८] (असावि) साक्षात् हुआ (वृषा हरिः) कामनावर्षक, दुःखापहर्ता सुखाहर्ता (राजा-इव दस्मः) राजा के समान दर्शनीय “दश दर्शने” [चुरादि॰] (गाः-अभि-अचिक्रदत्) स्तुतियों को लक्ष्यकर—स्तुतियों के अनुसार प्रवचन करता है (पुनानः-अव्ययं वारम्-अत्येषि) स्तुतियों द्वारा प्रेरित हुआ आत्मा के रक्षणरूप आवरक शरीर को पार कर—लाङ्घकर अन्दर आत्मा में प्राप्त होता है (श्येनः-न घृतवन्तं योनिम्-आसदत्) प्रशंसनीय गतिवाले भासपक्षी (बाज) की भाँति तेजोयुक्त—आत्मा वाले—आत्मगृह हृदय को प्राप्त हो जाता है।
भावार्थ - शान्तस्वरूप परमात्मा आरोचमान कामनावर्षक दुःखापहर्ता सुखाहर्ता के रूप में साक्षात् होता है, राजा की भाँति दर्शनीय है, स्तुतियों के अनुसार प्रवचन करता है स्तुतियों द्वारा प्रेरित हुआ ही शरीर आवरक को लाङ्घकर अन्दर आत्मा में प्राप्त होता है, इस प्रकार प्रशंसनीय गति वाले भासपक्षी (बाज) के समान आत्मा से युक्त हृदय प्रदेश को प्राप्त होता है॥९॥
विशेष - ऋषिः—वसु भारद्वाजः (अमृत अन्नभोग का अधिकारी परमात्मा में वसा हुआ)॥<br>
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