Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 620
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - पुरुषः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
5
ता꣡वा꣢नस्य महि꣣मा꣢꣫ ततो꣣ ज्या꣡या꣢ꣳश्च꣣ पू꣡रु꣢षः । उ꣣ता꣡मृ꣢त꣣त्व꣡स्येशा꣢꣯नो꣣ य꣡दन्ने꣢꣯नाति꣣रो꣡ह꣢ति ॥६२०॥
स्वर सहित पद पाठता꣡वा꣢꣯न् । अ꣣स्य । महिमा꣢ । त꣡तः꣢꣯ । ज्या꣡या꣢꣯न् । च꣣ । पू꣡रु꣢꣯षः । उ꣣त꣢ । अ꣣मृतत्व꣡स्य꣢ । अ꣣ । मृतत्व꣡स्य꣢ । ई꣡शा꣢꣯नः । यत् । अ꣡न्ने꣢꣯न । अ꣣तिरो꣡ह꣢ति । अ꣣ति । रो꣡ह꣢꣯ति ॥६२०॥
स्वर रहित मन्त्र
तावानस्य महिमा ततो ज्यायाꣳश्च पूरुषः । उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥६२०॥
स्वर रहित पद पाठ
तावान् । अस्य । महिमा । ततः । ज्यायान् । च । पूरुषः । उत । अमृतत्वस्य । अ । मृतत्वस्य । ईशानः । यत् । अन्नेन । अतिरोहति । अति । रोहति ॥६२०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 620
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4;
Acknowledgment
पदार्थ -
(तावान्-अस्य महिमा) उतना एक पाद मात्र उत्पन्न और उत्पन्न होने वाला भौतिक जगत् यह सब पूर्ण पुरुष परमात्मा की महिमा—स्थूल दृष्टि से परिचय कराने वाली है (च) और (ततः-ज्यायान् पूरुषः) उससे अधिक महान् पूर्ण पुरुष परमात्मा है (उत) और वह (अमृतत्वस्य-ईशानः) त्रिपादरूप अमृतस्वरूप का ईश है—स्वामी है (यत्-अन्नेन-अतिरोहति) जोकि कर्मफल भोग से—भोग का लक्ष्य बना जगत् में आकर अतिरोहण करता है—मोक्ष की ओर जाता है उस जीववर्ग का भी स्वामी है।
भावार्थ - जितना भी भौतिक जगत् है, जो उत्पन्न हुआ या होने वाला है, वह सब पूर्ण पुरुष परमात्मा की महिमा मात्र है। पुरुष परमात्मा तो इससे महान् है। वह अमृतत्व का स्वामी है और जो कर्मफल भोग के लक्ष्य से आकर पुनः मोक्ष की ओर भी अतिरोहण करता है, उस जीववर्ग का भी स्वामी है, उसे ऐसे पुरुष की शरण लेना कल्याणकर है॥६॥
विशेष - ऋषिः—नारायणः (नाराः—नर जिसके सूनुसन्तान हैं ऐसे “आपः-नाराः” अयनज्ञान का आश्रय जिसका हो)॥ देवता—पुरुषः (सृष्टिपुर में बसा हुआ पूर्णपुरुष परमात्मा)॥ छन्दः—अनुष्टुप्॥<br>
इस भाष्य को एडिट करें