Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 627
ऋषिः - शतं वैखानसाः देवता - अग्निः पवमानः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
4

अ꣢ग्न꣣ आ꣡यू꣢ꣳषि पवस꣣ आ꣢सु꣣वो꣢र्ज꣣मि꣡षं꣢ च नः । आ꣣रे꣡ बा꣢धस्व दु꣣च्छु꣡ना꣢म् ॥६२७॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡ग्ने꣢꣯ । आ꣡यूँ꣢꣯षि । प꣣वसे । आ꣢ । सु꣣व । ऊ꣡र्ज꣢꣯म् । इ꣡ष꣢꣯म् । च꣣ । नः । आरे꣢ । बा꣣धस्व । दुच्छु꣡ना꣢म् ॥६२७॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्न आयूꣳषि पवस आसुवोर्जमिषं च नः । आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ॥६२७॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्ने । आयूँषि । पवसे । आ । सुव । ऊर्जम् । इषम् । च । नः । आरे । बाधस्व । दुच्छुनाम् ॥६२७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 627
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
Acknowledgment

पदार्थ -
(अग्ने) हे अग्रणेता परमात्मन्! (आयूंषि पवसे) प्राणों को “यो वै प्राणः स आयुः” [श॰ ५.२.४.१०] प्रेरित कर “लिङर्थे लेट्” [अष्टा॰ ३.४.७] (ऊर्जम्-इषं च नः-आसुवः) अतः रसात्मक सूक्ष्मभोग को मोक्षरूप आयु का फल और स्थूल अन्नभोग तथा संसार में भौतिक प्राणों का फल अन्न हमारे लिये प्रादुर्भूत कर (दुच्छुनाम्) पाप प्रवृत्ति को “यः पापं कामयते स वै दुच्छुना” [जै॰ १.९३] (आरे बाधस्व) दूर भगा “आरे दूरनाम” [निघं॰ ३.२६]।

भावार्थ - हे अग्रणायक परमात्मन्! तू हमारे प्राणों को आगे आगे प्रेरित कर, भौतिकता से बढ़ते बढ़ते मोक्षधाम में, अमृतरूप धारण करें इस जगत् में स्थूल अन्नभोग को प्राप्त कराते हुए पुनः मोक्ष में अमृतरस को भी तो प्राप्त करा। इस लोक की उस दुष्प्रवृत्ति को दूर भगा॥१॥

विशेष - ऋषिः—शतं वैखानसः-ऋषयः (बहुत सारे अमृत आनन्द का विशेष खनन—खोज करने वाले उपासक जन*49)॥ देवता—अग्निः पवमानः (प्रेरणा देनेवाले अग्रणायक परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

इस भाष्य को एडिट करें
Top