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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 632
ऋषिः - सार्पराज्ञी
देवता - सूर्यः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
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त्रि꣣ꣳश꣢꣫द्धाम꣣ वि꣡ रा꣢जति꣣ वा꣡क्प꣢त꣣ङ्गा꣡य꣢ धीयते । प्र꣢ति꣣ व꣢स्तो꣣र꣢ह꣣ द्यु꣡भिः꣢ ॥६३२॥
स्वर सहित पद पाठत्रिँ꣣श꣢त् । धा꣡म꣢꣯ । वि । रा꣣जति । वा꣢क् । प꣣तङ्गा꣡य꣢ । धी꣣यते । प्र꣡ति꣢꣯ । व꣡स्तोः꣢꣯ । अ꣡ह꣢꣯ । द्यु꣡भिः꣢꣯ ॥६३२॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रिꣳशद्धाम वि राजति वाक्पतङ्गाय धीयते । प्रति वस्तोरह द्युभिः ॥६३२॥
स्वर रहित पद पाठ
त्रिँशत् । धाम । वि । राजति । वाक् । पतङ्गाय । धीयते । प्रति । वस्तोः । अह । द्युभिः ॥६३२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 632
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
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पदार्थ -
(पतङ्गाय) मुझ आत्मा में प्राप्त होने वाले परमात्मा के लिये (प्रति वस्तोः-वाक्-धीयते) प्रतिदिन मेरे द्वारा स्तुति आधान की जाती है—समर्पित की जाती है (अह) क्या ही अच्छा है “अह पूजायाम्” [अव्ययार्थनिबन्धनम्] (द्युभिः) अपनी ज्योतियों से मेरे अन्दर (त्रिंशत्-धाम) तीसों घड़ी (विराजति) विशेष भासित रहता है “राजृ दीप्तौ”।
भावार्थ - आत्मा में प्राप्त होने वाले परमात्मा के लिये मुझ उपासक द्वारा प्रतिदिन स्तुति समर्पित की जाती है यह अच्छा है, वह परमात्मा भी अपनी ज्योतियों से तीसों घड़ी—दिन-रात मुझ उपासक के अन्दर विशेष भासित रहता है, मेरी स्तुति रिक्त नहीं जाती और वह भी दया न्याय नहीं त्यागता है॥६॥
विशेष - ऋषिः—सार्पराज्ञी (वाक्शक्तिसम्पन्न व्यक्ति)॥<br>
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