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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 678
ऋषिः - उशना काव्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
7
स्वा꣣युधः꣡ प꣢वते दे꣣व꣡ इन्दुर꣢꣯शस्ति꣣हा꣢ वृ꣣ज꣢ना꣣ र꣡क्ष꣢माणः । पि꣣ता꣢ दे꣣वा꣡नां꣢ जनि꣣ता꣢ सु꣣द꣡क्षो꣢ विष्ट꣣म्भो꣢ दि꣣वो꣢ ध꣣रु꣡णः꣢ पृथि꣣व्याः꣢ ॥६७८॥
स्वर सहित पद पाठस्वा꣣युधः꣢ । सु꣣ । आयुधः꣢ । प꣣वते । देवः꣡ । इ꣢न्दुः꣢꣯ । अ꣣शस्तिहा꣢ । अ꣣शस्ति । हा꣢ । वृ꣣ज꣡ना꣢ । र꣡क्ष꣢꣯माणः । पि꣣ता꣢ । दे꣣वा꣡ना꣢म् । ज꣣निता꣢ । सु꣣द꣡क्षः꣢ । सु꣣ । द꣡क्षः꣢꣯ । वि꣡ष्टम्भः꣢ । वि꣣ । स्तम्भः꣢ । दि꣣वः꣢ । ध꣣रु꣡णः꣢ । पृ꣣थिव्याः꣢ ॥६७८॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वायुधः पवते देव इन्दुरशस्तिहा वृजना रक्षमाणः । पिता देवानां जनिता सुदक्षो विष्टम्भो दिवो धरुणः पृथिव्याः ॥६७८॥
स्वर रहित पद पाठ
स्वायुधः । सु । आयुधः । पवते । देवः । इन्दुः । अशस्तिहा । अशस्ति । हा । वृजना । रक्षमाणः । पिता । देवानाम् । जनिता । सुदक्षः । सु । दक्षः । विष्टम्भः । वि । स्तम्भः । दिवः । धरुणः । पृथिव्याः ॥६७८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 678
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(इन्दुः-देवः) आनन्दरसभरा शान्त परमात्मदेव (स्वायुधः) स्वशक्तिरूप आयुध वाला विरोधी के ताड़न करने को स्वशक्तिरूप अस्त्र वाला (अशस्तिहा) पापनाशक “पाप्मा वा अशस्तिः” [श॰ ६.३.२.७] (वृजना रक्षमाणः) समस्त बलों को रखता हुआ “वृजनं बलनाम” [निघं॰ २.९] (देवानां जनिता पिता) दिव्यगुण पदार्थों का उत्पादक और रक्षक (सुदक्षः) सुन्दर प्राणप्रेरक “प्राणो वै दक्षः” [श॰ ४.१.४.१] (दिवः-विष्टम्भः) द्युलोक का सम्भालने वाला (पृथिव्याः-धरुणः) पृथिवीलोक का धारक (पवते) आत्मा में प्राप्त होता है।
भावार्थ - आनन्दरस का भरा परमात्मा जो महान् द्युलोक का सम्भालने वाला और पृथिवी को धारण करने वाला है अपितु समस्त दिव्यगुण पदार्थों का जनक और रक्षक है जिससे सब में सम्यक् प्राणसञ्चार होता है वह पापविनाशक बलों का रक्षक उपासक के अन्दर प्राप्त होता है॥२॥
विशेष - <br>
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