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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 712
ऋषिः - नृमेध आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - पुर उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
2
यु꣣ञ्ज꣢न्ति꣣ ह꣡री꣢ इषि꣣र꣢स्य꣣ गा꣡थ꣢यो꣣रौ꣡ रथ꣢꣯ उ꣣रु꣡यु꣢गे वचो꣣यु꣡जा꣢ । इ꣣न्द्रवा꣡हा꣢ स्व꣣र्वि꣡दा꣢ ॥७१२॥
स्वर सहित पद पाठयुञ्ज꣡न्ति꣢ । हरी꣢꣯इ꣡ति꣢ । इषिर꣡स्य꣢ । गा꣡थ꣢꣯या । उ꣣रौ꣢ । र꣡थे꣢꣯ । उ꣣रु꣡यु꣢गे । उ꣣रु꣢ । यु꣣गे । वचोयु꣡जा꣢ । व꣣चः । यु꣡जा꣢꣯ । इ꣣न्द्रवा꣡हा꣢ । इ꣣न्द्र । वा꣡हा꣢꣯ । स्व꣣र्वि꣡दा꣢ । स्वः꣣ । वि꣡दा꣢꣯ ॥७१२॥
स्वर रहित मन्त्र
युञ्जन्ति हरी इषिरस्य गाथयोरौ रथ उरुयुगे वचोयुजा । इन्द्रवाहा स्वर्विदा ॥७१२॥
स्वर रहित पद पाठ
युञ्जन्ति । हरीइति । इषिरस्य । गाथया । उरौ । रथे । उरुयुगे । उरु । युगे । वचोयुजा । वचः । युजा । इन्द्रवाहा । इन्द्र । वाहा । स्वर्विदा । स्वः । विदा ॥७१२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 712
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(इषिरस्य) प्रेरक परमात्मा के (हरी) दुःखापहरण सुखाहरणसाधनभूत ऋक् साम वाणी से स्तवन और मन से उपासक को “ऋक्सामे वै हरी” [श॰ ४.४.३.६] “यद्वै शिवं शान्तं वाचस्तत् साम” [जै॰ ३.५२] (गाथया) वेदवाक्—मन्त्र से “गाथा वाङ्नाम” [निघं॰ १.११] (वचोयुजा) प्रार्थनावचन से जो युक्त है (इन्द्रवाहा) परमात्मा को ले आने वाले (स्वर्विदा) मोक्ष प्राप्त कराने वाले हैं उन स्तवन उपासन को (उरुयुगे-उरौ रथे) महान् योगभूमि वाले महान् रसरूप ध्यानयज्ञ में “तं वा एतं रसं सन्तं रथ इत्याचक्षते” [गो॰ १.२.२१] (युञ्जन्ति) उपासकजन युक्त प्रयुक्त करते हैं।
भावार्थ - वेदमन्त्रानुरूप प्रार्थना प्रयुक्त प्रेरक परमात्मा की स्तुति उपासना करो जोकि परमात्मा के आमन्त्रित करने वाले मोक्ष प्राप्त कराने वाले महान् उपाय महान् योगभूमि वाले रसरूप ध्यान में उपासक प्रयुक्त करते हैं हमें करना चाहिये॥३॥
विशेष - <br>
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