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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 724
ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
त्रि꣡क꣢द्रुकेषु꣣ चे꣡त꣢नं दे꣣वा꣡सो꣢ य꣣ज्ञ꣡म꣢त्नत । त꣡मि꣢꣯द्वर्धन्तु नो꣣ गि꣡रः꣢ ॥७२४॥
स्वर सहित पद पाठत्रि꣡क꣢꣯द्रुकेषु । त्रि । क꣣द्रुकेषु । चे꣡तन꣢꣯म् । दे꣣वा꣡सः꣢ । य꣣ज्ञ꣢म् । अ꣣त्नत । त꣣म् । इत् । व꣣र्द्धन्तु । नः । गि꣡रः꣢꣯ ॥७२४॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रिकद्रुकेषु चेतनं देवासो यज्ञमत्नत । तमिद्वर्धन्तु नो गिरः ॥७२४॥
स्वर रहित पद पाठ
त्रिकद्रुकेषु । त्रि । कद्रुकेषु । चेतनम् । देवासः । यज्ञम् । अत्नत । तम् । इत् । वर्द्धन्तु । नः । गिरः ॥७२४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 724
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(देवासः) मुमुक्षुजन (त्रिकद्रुकेषु) तीन योगभूमियों—धारणाध्यान समाधियों में “पृथिवी वै कद्रूः” [श॰ ३.१.२.२] “देशबन्धश्चित्तस्य धारणा, तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्, तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः” [योग॰ ३.१-३] (चेतनं यज्ञम्) अध्यात्मयज्ञ योगाभ्यास को (अत्नत) तानते हैं—सम्पादन करते हैं (तम् इत्) उसे अवश्य (नः-गिरः) हमारी स्तुतियाँ (वर्धन्तु) बढ़ावें—बढ़ाती हैं।
भावार्थ - मुमुक्षुजन अध्यात्मयज्ञ को धारणाध्यान समाधि रूप तीन योगभूमियों में विस्तृत करते हैं, अतः हमें अध्यात्मयज्ञ करना चाहिये उसे हमारी स्तुतियाँ उन्नत करें, हम स्तुतियों में ओ३म् परमात्मा को धारणाध्यान समाधि का अवलम्बन बनावें “तज्जपस्तदर्थभावनम्” [योग॰ १.२८] को घटावें॥३॥
विशेष - <br>
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