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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 748
ऋषिः - नारदः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
4
त꣡मु꣢ हुवे꣣ वा꣡ज꣢सातय꣣ इ꣢न्द्रं꣣ भ꣡रा꣢य शु꣣ष्मि꣡ण꣢म् । भ꣡वा꣢ नः सु꣣म्ने꣡ अन्त꣢꣯मः꣣ स꣡खा꣢ वृ꣣धे꣢ ॥७४८॥
स्वर सहित पद पाठतम् । उ꣣ । हुवे । वा꣡ज꣢꣯सातये । वा꣡ज꣢꣯ । सा꣣तये । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । भ꣡रा꣢꣯य । शु꣣ष्मि꣡ण꣢म् । भ꣡व꣢꣯ । नः꣣ । सुम्ने꣢ । अ꣡न्त꣢꣯मः । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣡ । वृधे꣢ ॥७४८॥
स्वर रहित मन्त्र
तमु हुवे वाजसातय इन्द्रं भराय शुष्मिणम् । भवा नः सुम्ने अन्तमः सखा वृधे ॥७४८॥
स्वर रहित पद पाठ
तम् । उ । हुवे । वाजसातये । वाज । सातये । इन्द्रम् । भराय । शुष्मिणम् । भव । नः । सुम्ने । अन्तमः । सखा । स । खा । वृधे ॥७४८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 748
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(तं शुष्मिणम्-इन्द्रम्-उ) उस सर्व बल वाले परमात्मा को अवश्य (वाजसातये भराय हुवे) अमृत भोग—मोक्षानन्द के लिए “अमृतोऽन्नं वै वाजः” [जै॰ २.१९३] तथा सांसारिक भरण पोषण—सांसारिक शुभ सुख भोग के लिए आमन्त्रित करता हूँ, अतः हे परमात्मन्! तू (नः) हमारे (सुम्ने) सर्व सुख के निमित्त “सुम्नं सुखनाम” [निघं॰ ३.६] और (वृधे) वृद्धि के लिये—जीवन विकास के लिए (अन्तमः सखा भव) अन्तिकतम—अत्यन्त समीपी साथी हृदयस्थ हो जा।
भावार्थ - समस्त बल रखने वाले परमात्मा को हृदय में आमन्त्रित करना चाहिये वह ही मोक्ष का अमृत भोग और सांसारिक भरण पोषणरूप सुख एवं सर्व सुख देता है तथा हमारे जीवन विकास में अत्यन्त समीपी साथी हृदयवासी है॥३॥
विशेष - <br>
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