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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 777
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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तु꣢भ्ये꣣मा꣡ भुव꣢꣯ना कवे महि꣣म्ने꣡ सो꣢म तस्थिरे । तु꣡भ्यं꣢ धावन्ति धे꣣न꣡वः꣢ ॥७७७॥

स्वर सहित पद पाठ

तु꣡भ्य꣢꣯ । इ꣡मा꣢ । भु꣡व꣢꣯ना । क꣣वे । महिम्ने꣢ । सो꣣म । तस्थिरे । तु꣡भ्य꣢꣯म् । धा꣣वन्ति । धेन꣡वः꣢ ॥७७७॥


स्वर रहित मन्त्र

तुभ्येमा भुवना कवे महिम्ने सोम तस्थिरे । तुभ्यं धावन्ति धेनवः ॥७७७॥


स्वर रहित पद पाठ

तुभ्य । इमा । भुवना । कवे । महिम्ने । सोम । तस्थिरे । तुभ्यम् । धावन्ति । धेनवः ॥७७७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 777
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(कवे सोम) हे क्रान्तदर्शक—समस्त बाहिर भीतर के द्रष्टा शान्त परमात्मन् (इमा भुवना) बाहिरी लोक लोकान्तर और भीतरी इन्द्रिय संस्थान (तुभ्यम्) ‘तव-विभक्तिव्यत्ययः’ तेरी (महिम्ने) महिमा को दर्शाने के लिए (तस्थिरे) वर्तमान हैं और नियत हैं (तुभ्यं धेनवः-धावन्ति) तेरी महिमा दर्शाने और गाने के लिये बाहिरी वाक् विद्युतें विद्युच्छक्तियाँ और भीतरी वाणियाँ प्रगति कर रही हैं, प्रवृत्त हो रही हैं।

भावार्थ - हे व्यष्टि समष्टि के द्रष्टा शान्त परमात्मन्! समस्त लोक लोकान्तर और इन्द्रिय संस्थान तेरी महिमा दर्शाने को वर्तमान है, स्थिर है, दर्शा रही है और विद्युत्-शक्तियाँ और वाणियाँ तेरी महिमा को गा रही हैं॥३॥

विशेष - <br>

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