Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 786
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
9

आ꣡ प꣢वस्व सु꣣वी꣢र्यं꣣ म꣡न्द꣢मानः स्वायुध । इ꣣हो꣡ ष्वि꣢न्द꣣वा꣡ ग꣢हि ॥७८६॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣢ । प꣣वस्व । सुवी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् । म꣡न्द꣢꣯मानः । स्वा꣣युध । सु । आयुध । इ꣢ह । उ꣣ । सु꣢ । इ꣣न्दो । आ꣢ । ग꣣हि ॥७८६॥


स्वर रहित मन्त्र

आ पवस्व सुवीर्यं मन्दमानः स्वायुध । इहो ष्विन्दवा गहि ॥७८६॥


स्वर रहित पद पाठ

आ । पवस्व । सुवीर्यम् । सु । वीर्यम् । मन्दमानः । स्वायुध । सु । आयुध । इह । उ । सु । इन्दो । आ । गहि ॥७८६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 786
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
Acknowledgment

पदार्थ -
(स्वायुध इन्दो) हे शोभन आयुध वाले—काम आदि दोषों को सरल भाव से मिटाने वाले गुणरूप शस्त्रों वाले शान्त परमात्मन्! (मन्दमानः) स्तुत किया जाता हुआ “मन्दते अर्चतिकर्मा” [निघं॰ ३.१४] (सुवीर्यम्-आपवस्व) शोभन—श्रेष्ठ बल को प्रेरित कर (इह-उ) यहाँ हृदय में अवश्य (सु-आगहि) भली प्रकार आ—प्राप्त हो।

भावार्थ - काम आदि को नष्ट करने के लिए शान्तादि गुण प्रभाव वाला परमात्मा अर्चित उपासित हुआ हृदय में साक्षात् आत्मबल को प्रेरित करता है॥३॥

विशेष - <br>

इस भाष्य को एडिट करें
Top