Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 793
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
मि꣣त्रं꣢ व꣣य꣡ꣳ ह꣢वामहे꣣ व꣡रु꣢ण꣣ꣳ सो꣡म꣢पीतये । या꣢ जा꣣ता꣢ पू꣣त꣡द꣢क्षसा ॥७९३॥
स्वर सहित पद पाठमि꣣त्र꣢म् । मि꣣ । त्र꣢म् । व꣣य꣢म् । ह꣣वामहे । व꣡रु꣢꣯णम् । सो꣡म꣢꣯पीतये । सो꣡म꣢꣯ । पी꣣तये । या꣢ । जा꣡ता꣢ । पू꣣त꣡द꣢क्षसा । पू꣣त꣢ । द꣣क्षसा ॥७९३॥
स्वर रहित मन्त्र
मित्रं वयꣳ हवामहे वरुणꣳ सोमपीतये । या जाता पूतदक्षसा ॥७९३॥
स्वर रहित पद पाठ
मित्रम् । मि । त्रम् । वयम् । हवामहे । वरुणम् । सोमपीतये । सोम । पीतये । या । जाता । पूतदक्षसा । पूत । दक्षसा ॥७९३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 793
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
Acknowledgment
पदार्थ -
(वयम्) हम (सोमपीतये) मोक्षानन्दरसपान के लिए (मित्रं वरुणम्) संसार में शुभकर्माचरणार्थ प्रेरक शुभकर्मफलभोगार्थ अपनी ओर वरने वाले परमात्मा को (हवामहे) स्मरण करते हैं—उपासित करते हैं (या पूतदक्षसा जाता) जो हमारे लिये दो धर्म वाले मित्ररूप में और वरुण रूप में पवित्र बल वाले प्रसिद्ध स्वतः सिद्ध हैं।
भावार्थ - हम मोक्षानन्दरसपान के लिए उस परमात्मा का स्मरण करें, उसकी उपासना करें, जो दो धर्मों वाला एक शुभ कर्म करणार्थ संसार में हमें प्रेरित करता है। पुनः शुभ कर्मों का मोक्षफलभोगार्थ अपनी ओर वरण करने वाला है। उक्त दोनों धर्म उसके पवित्र—निर्दोष—नितान्त प्रशंसनीय और स्वतःसिद्ध प्रसिद्ध हैं॥१॥
विशेष - ऋषिः—मेधातिथिः (मेधा से परमात्मा में गमन प्रवेश करने वाला)॥ देवता—मित्रावरुणौ (प्रेरणा देने वाला और वरने अपनाने वाला परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
इस भाष्य को एडिट करें