Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 801
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
3

ता꣡ हि शश्व꣢꣯न्त꣣ ई꣡ड꣢त इ꣣त्था꣡ विप्रा꣢꣯स ऊ꣣त꣡ये꣢ । स꣣बा꣢धो꣣ वा꣡ज꣢सातये ॥८०१॥

स्वर सहित पद पाठ

ताः । हि । श꣡श्व꣢꣯न्तः । ई꣡ड꣢꣯ते । इ꣣त्था꣢ । वि꣡प्रा꣢꣯सः । वि । प्रा꣣सः । ऊत꣡ये꣢ । स꣣बा꣡धः꣢ । स꣣ । बा꣡धः꣢꣯ । वा꣡ज꣢꣯सातये । वा꣡ज꣢꣯ । सा꣣तये ॥८०१॥


स्वर रहित मन्त्र

ता हि शश्वन्त ईडत इत्था विप्रास ऊतये । सबाधो वाजसातये ॥८०१॥


स्वर रहित पद पाठ

ताः । हि । शश्वन्तः । ईडते । इत्था । विप्रासः । वि । प्रासः । ऊतये । सबाधः । स । बाधः । वाजसातये । वाज । सातये ॥८०१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 801
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
Acknowledgment

पदार्थ -
(इत्था) सचमुच “इत्था सत्यनाम” [निघं॰ ३.१०] (शश्वन्तः-विप्रासः) बहुत विप्र—मेधावी विद्वान् (ऊतये) रक्षा के लिए (ता हि ईडते) उन ऐश्वर्यवान् और अग्रणायक परमात्मा को ही स्तुत करते हैं (वाजसातये) अमृत अन्नभोग प्राप्ति के लिए (सबाधः) समान बाध पीड़ा वाले होकर।

भावार्थ - यह सत्य है कि उपासकजन एक साथ बाधा पीड़ा या संकट आ जाने पर सब दशा में परमात्मा की शरण लेते हैं॥२॥

विशेष - <br>

इस भाष्य को एडिट करें
Top