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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 834
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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आ꣡ नः꣢ सोम꣣ स꣢हो꣣ जु꣡वो꣢ रू꣣पं꣡ न वर्च꣢꣯से भर । सु꣣ष्वाणो꣢ दे꣣व꣡वी꣢तये ॥८३४॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣡ । नः꣣ । सोम । स꣡हः꣢꣯ । जु꣡वः꣢꣯ । रू꣣प꣢म् । न । व꣡र्च꣢꣯से । भ꣣र । सुष्वाणः꣢ । दे꣣व꣡वी꣣तये । दे꣣व꣡ । वी꣣तये ॥८३४॥


स्वर रहित मन्त्र

आ नः सोम सहो जुवो रूपं न वर्चसे भर । सुष्वाणो देववीतये ॥८३४॥


स्वर रहित पद पाठ

आ । नः । सोम । सहः । जुवः । रूपम् । न । वर्चसे । भर । सुष्वाणः । देववीतये । देव । वीतये ॥८३४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 834
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (सुष्वाणः) उपासना द्वारा साक्षात् हुआ (नः) हमारी (जुवः सहः-रूपं न) वाणी के “जूरसीत्येतद्ध वा अस्या वाच एकं नाम” [श॰ ३.२.४.११] बल “सहः-बलनाम” [निघं॰ २.९] को निरूपणप्रकार भावनामय को भी (वर्चसे) आत्मतेज के सम्पन्न करने के लिए (देववीतये) तुझ देव की प्राप्ति के लिए (आभर) आभरित कर—पूर्णरूप से भर दे।

भावार्थ - परमात्मा उपासकों को स्वसाक्षात्कार के निमित्त उनकी वाणी में वदनशक्ति और भावमय स्तवनप्रकार को आत्मतेज के लिए और अपनी प्राप्ति के लिए पूरा भर देता है॥२॥

विशेष - <br>

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