Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 920
ऋषिः - दृढच्युत आगस्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
सं꣢ दे꣣वैः꣡ शो꣢भते꣣ वृ꣡षा꣢ क꣣वि꣢꣫र्यो꣣नाव꣡धि꣢ प्रि꣣यः꣢ । प꣡व꣢मानो꣣ अ꣡दा꣢भ्यः ॥९२०॥
स्वर सहित पद पाठसम् । दे꣣वैः꣢ । शो꣣भते । वृ꣡षा꣢꣯ । क꣡विः꣢ । यो꣡नौ꣢꣯ । अ꣡धि꣢꣯ । प्रि꣣यः꣢ । प꣡व꣢꣯मानः । अ꣡दा꣢꣯भ्यः । अ । दा꣣भ्यः ॥९२०॥
स्वर रहित मन्त्र
सं देवैः शोभते वृषा कविर्योनावधि प्रियः । पवमानो अदाभ्यः ॥९२०॥
स्वर रहित पद पाठ
सम् । देवैः । शोभते । वृषा । कविः । योनौ । अधि । प्रियः । पवमानः । अदाभ्यः । अ । दाभ्यः ॥९२०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 920
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment
पदार्थ -
(वृषा) सुखवर्षक (कविः) क्रान्तदर्शी (प्रियः) स्नेही (पवमानः) धारारूप में प्राप्त होने वाला (अदाभ्यः) न दबने न हिंसित करने योग्य*65 परमात्मा (देवैः योनौ अधि संशोभते) मुमुक्षु उपासकजनों द्वारा स्तुति से उनके (योनौ अधि) हृदय में दीप्त होता है—प्रकाशित होता है*66॥२॥
टिप्पणी -
[*65. “न दब्धुमशक्नुवन्” [काठक॰ ३०.७]।] [*66. “शुभ दीप्तौ” [भ्वादि॰]।]
विशेष - <br>
इस भाष्य को एडिट करें