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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 973
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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स꣡ वह्नि꣢꣯र꣣प्सु꣢ दु꣣ष्ट꣡रो꣢ मृ꣣ज्य꣡मा꣢नो꣣ ग꣡भ꣢स्त्योः । सो꣡म꣢श्च꣣मू꣡षु꣢ सीदति ॥९७३॥

स्वर सहित पद पाठ

सः꣢ । व꣡ह्निः꣢꣯ । अ꣣प्सु꣢ । दु꣣ष्ट꣡रः꣢ । दुः꣣ । त꣡रः꣢꣯ । मृ꣣ज्य꣡मा꣢नः । ग꣡भ꣢꣯स्त्योः । सो꣡मः꣢꣯ । च꣣मू꣡षु꣢ । सी꣣दति ॥९७३॥


स्वर रहित मन्त्र

स वह्निरप्सु दुष्टरो मृज्यमानो गभस्त्योः । सोमश्चमूषु सीदति ॥९७३॥


स्वर रहित पद पाठ

सः । वह्निः । अप्सु । दुष्टरः । दुः । तरः । मृज्यमानः । गभस्त्योः । सोमः । चमूषु । सीदति ॥९७३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 973
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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पदार्थ -
(सः-वह्निः-सोमः) वह उपासकों का निर्वाहक सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा (अप्सु दुष्टरः) कामनाओं में*29 फँसे रहने में तो दुष्प्राप्य है—अप्राप्य है (गभस्त्योः-मृज्यमानः) गभ—प्रजा—सन्ततिभाव*30 को फेंक हटाने मिटाने वाले अभ्यास और वैराग्य में प्राप्त होता हुआ (चमूषु सीदति) विषय वासनाओं के चमनों भक्षणों*31—मन बुद्धि चित्त अहङ्काररूप पात्रों में बैठ जाता है। इन ही में परमात्मा का मनन विवेचन स्मरण व ममत्व होता रहता है॥६॥

विशेष - <br>

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