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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 995
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
अ꣣प्सा꣡ इन्द्रा꣢꣯य वा꣣य꣢वे꣣ व꣡रु꣢णाय म꣣रु꣡द्भ्यः꣢ । सो꣡मा꣢ अर्षन्तु꣣ वि꣡ष्ण꣢वे ॥९९५॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣प्साः꣢ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । वा꣣य꣡वे꣢ । व꣡रु꣢꣯णाय । म꣣रु꣡द्भयः꣢ । सो꣡माः꣢꣯ । अ꣣र्षन्तु । वि꣡ष्ण꣢꣯वे ॥९९५॥
स्वर रहित मन्त्र
अप्सा इन्द्राय वायवे वरुणाय मरुद्भ्यः । सोमा अर्षन्तु विष्णवे ॥९९५॥
स्वर रहित पद पाठ
अप्साः । इन्द्राय । वायवे । वरुणाय । मरुद्भयः । सोमाः । अर्षन्तु । विष्णवे ॥९९५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 995
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(अप्साः सोमाः) व्यापक शान्तस्वरूप परमात्मा*68 (इन्द्राय) आत्मा के लिए (वायवे) मन के लिए*69 (वरुणाय) प्राण के लिए*70 (मरुद्भ्यः) ओज वीर्य के लिए*71 (विष्णवे) श्रोत्र के लिए*72 (अर्षन्तु) प्राप्त हो, इन सब के अन्दर शान्ति का प्रवाह चले॥२॥
टिप्पणी -
[*68. “अप्सो नाम व्यापिनः” [निरु॰ ५.१३] बहुवचनमादरार्थम्।] [*69. “मनो वायुः” [काठ॰ १३.१]।] [*70. “यः प्राणः स वरुणः” [गो॰ २.४.११]।] [*71. “ओजो वै वीर्यं मरुतः” [जै॰ ३.३०९]।] [*72. “यच्छ्रोत्रं स विष्णुः” [गो॰ २.४.१२]।]
विशेष - <br>
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