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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1811
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - द्विपदा गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
ते꣢ सु꣣ता꣡सो꣢ विप꣣श्चि꣡तः꣢ शु꣣क्रा꣢ वा꣣यु꣡म꣢सृक्षत ॥१८११॥
स्वर सहित पद पाठते । सु꣣ता꣡सः꣢ । वि꣣पश्चि꣡तः꣢ । वि꣣पः । चि꣡तः꣢꣯ । शु꣣क्राः꣢ । वा꣣यु꣢म् । अ꣣सृक्षत ॥१८११॥
स्वर रहित मन्त्र
ते सुतासो विपश्चितः शुक्रा वायुमसृक्षत ॥१८११॥
स्वर रहित पद पाठ
ते । सुतासः । विपश्चितः । विपः । चितः । शुक्राः । वायुम् । असृक्षत ॥१८११॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1811
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 4; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 4; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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Meaning -
Your creative spirits of imagination, powerful and most ecstatic, give birth to the vibrant poet creator, the karma yogi of imagination. (Rg. 9-67-18)