Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1832
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
पु꣡न꣢रू꣣र्जा꣡ नि व꣢꣯र्तस्व꣣ पु꣡न꣢रग्न इ꣣षा꣡यु꣢षा । पु꣡न꣢र्नः पा꣣ह्य꣡ꣳह꣢सः ॥१८३२॥
स्वर सहित पद पाठपु꣡नः꣢꣯ । ऊ꣣र्जा꣢ । नि । व꣣र्तस्व । पु꣡नः꣢꣯ । अ꣣ग्ने । इषा꣢ । आ꣡यु꣢꣯षा । पु꣡नः꣢꣯ । नः꣣ । पाहि । अ꣡ꣳह꣢꣯सः ॥१८३२॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनरूर्जा नि वर्तस्व पुनरग्न इषायुषा । पुनर्नः पाह्यꣳहसः ॥१८३२॥
स्वर रहित पद पाठ
पुनः । ऊर्जा । नि । वर्तस्व । पुनः । अग्ने । इषा । आयुषा । पुनः । नः । पाहि । अꣳहसः ॥१८३२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1832
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
Acknowledgment
Meaning -
Agni, come energy, again and again in cycle and recycle, come again and again with energy, life and good health, no end. Save us from sin, purify us from sin and evil, again and again. The cycle must goon.