Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 651
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
1
उ꣡पा꣢स्मै गायता नरः꣣ प꣡व꣢माना꣣ये꣡न्द꣢वे । अ꣣भि꣢ दे꣣वा꣡ꣳ इय꣢꣯क्षते ॥६५१॥
स्वर सहित पद पाठउ꣡प꣢꣯ । अ꣣स्मै । गायत । नरः । प꣡व꣢꣯मानाय । इ꣡न्द꣢꣯वे । अ꣣भि꣢ । दे꣣वा꣢न् । इ꣡य꣢꣯क्षते ॥६५१॥
स्वर रहित मन्त्र
उपास्मै गायता नरः पवमानायेन्दवे । अभि देवाꣳ इयक्षते ॥६५१॥
स्वर रहित पद पाठ
उप । अस्मै । गायत । नरः । पवमानाय । इन्दवे । अभि । देवान् । इयक्षते ॥६५१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 651
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
Meaning -
O leading lights of humanity, to win the wealth of lifes joy, work and sing in thanks and adoration for this infinite fount of pure bliss which overflows and yearns to join and inspire the noble creative performers of yajna. (Rg. 9-11-1)