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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1295
ऋषिः - राहूगण आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
7
स꣢ त्रि꣣त꣢꣫स्याधि꣣ सा꣡न꣢वि꣣ प꣡व꣢मानो अरोचयत् । जा꣣मि꣢भिः꣣ सू꣡र्य꣢ꣳ स꣣ह꣢ ॥१२९५॥
स्वर सहित पद पाठसः । त्रि꣣त꣡स्य꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । सा꣡न꣢꣯वि । प꣡व꣢꣯मानः । अ꣣रोचयत् । जामि꣡भिः꣢ । सू꣡र्य꣢꣯म् । स꣣ह꣢ ॥१२९५॥
स्वर रहित मन्त्र
स त्रितस्याधि सानवि पवमानो अरोचयत् । जामिभिः सूर्यꣳ सह ॥१२९५॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । त्रितस्य । अधि । सानवि । पवमानः । अरोचयत् । जामिभिः । सूर्यम् । सह ॥१२९५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1295
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
Acknowledgment
Meaning -
The All-purifying God, refines with allied function the intellect in the head of an ascetic longing for release from threefold sufferings.
Translator Comment -
$ Griffith intercepts Trita as a Rishi. This explanation is unsound as there is no history in the Vedas. The word means an ascetic looking for release from threefold sufferings, i.e., (1) आध्यात्मिक, spiritual, (2) आधिदैविक, elemental, (3) आधिभौतिक physical.