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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 4/ मन्त्र 38
    सूक्त - कश्यपः देवता - वशा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वशा गौ सूक्त

    यो वे॒हतं॒ मन्य॑मानो॒ऽमा च॒ पच॑ते व॒शाम्। अप्य॑स्य पु॒त्रान्पौत्रां॑श्च या॒चय॑ते॒ बृह॒स्पतिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । वे॒हत॑म् । मन्य॑मान: । अ॒मा । च॒ । पच॑ते । व॒शाम् । अपि॑ । अ॒स्य॒ । पु॒त्रान् । पौत्रा॑न्। च॒ । या॒चय॑ते । बृह॒स्पति॑: ॥४.३८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो वेहतं मन्यमानोऽमा च पचते वशाम्। अप्यस्य पुत्रान्पौत्रांश्च याचयते बृहस्पतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । वेहतम् । मन्यमान: । अमा । च । पचते । वशाम् । अपि । अस्य । पुत्रान् । पौत्रान्। च । याचयते । बृहस्पति: ॥४.३८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 38

    पदार्थ -
    (च) और (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] को (वेहतम्) गर्भघातिनी स्त्री [के समान रोगिणी] (मन्यमानः) मानता हुआ (यः) जो पुरुष (अमा) अपने घर में [उसकी निन्दा] (पचते) विख्यात करता है। (बृहस्पतिः) बड़े-बड़े लोकों का स्वामी [परमेश्वर] (अस्य) उस पुरुष के (पुत्रान्) पुत्रों (च) और (पौत्रान्) पौत्रों को (अपि) भी (याचयते) भिखारी बना देता है ॥३८॥

    भावार्थ - जो मनुष्य वृथा दोष लगाकर वेदवाणी से अपने सन्तानों को रोकता है, वह उन्हें अविवेकी करके निर्धनी और नीच बनाता है ॥३८॥

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