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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 56
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - निचृत्साम्नी बृहती सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    अ॒न्नाद्ये॑न॒ यश॑सा॒ तेज॑सा ब्राह्मणवर्च॒सेन॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न्न॒ऽअद्ये॑न । यश॑सा । तेज॑सा । ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सेन॑ ॥९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्नाद्येन यशसा तेजसा ब्राह्मणवर्चसेन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अन्नऽअद्येन । यशसा । तेजसा । ब्राह्मणऽवर्चसेन ॥९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 56

    पदार्थ -
    (पश्यत) हे देखनेवाले [जगदीश्वर !] (ते) तेरे लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, (पश्यत) हे देखनेवाले ! (मा) मुझको (अन्नाद्येन) भोजनयोग्य अन्न आदि के साथ, (यशसा) यश [शूरता आदि से पाये हुए नाम] के साथ, (तेजसा) तेज [निर्भयता, प्रताप] के साथ और (ब्राह्मणवर्चसा) वेदज्ञान के साथ (पश्य) देख ॥५५, ५६॥

    भावार्थ - मनुष्य सर्वद्रष्टा परमात्मा की उपासना से पुरुषार्थ और विवेकपूर्वक सब आवश्यक पदार्थ पाकर आनन्द भोगें ॥५५, ५६॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः ॥इत्यष्टाविंशः प्रपाठकः ॥ इति त्रयोदशं काण्डम् ॥ इति श्रीमद्राजाधिराजप्रथितमहागुणमहिमश्रीसयाजीरावगायकवाड़ाधिष्ठितबड़ोदेपुरीगतश्रावणमासपरीक्षायाम् ऋक्सामाथर्ववेदभाष्येषु लब्धदक्षिणेन श्रीपण्डितक्षेमकरणदासत्रिवेदिना कृते अथर्ववेदभाष्ये त्रयोदशं काण्डं समाप्तम् ॥

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