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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
    सूक्त - दुःस्वप्ननासन देवता - पङ्क्ति छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    तेनै॑नंविध्या॒म्यभू॑त्यैनं विध्यामि॒ निर्भू॑त्यैनं विध्यामि॒ परा॑भूत्यैनं विध्यामि॒ग्राह्यै॑नं विध्यामि॒ तम॑सैनं विध्यामि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तेन॑ । ए॒न॒म् । वि॒ध्या॒मि॒ । अभू॑त्या । ए॒न॒म् । वि॒ध्या॒मि॒ । नि:ऽभू॑त्या । ए॒न॒म् । वि॒ध्या॒मि॒ । परा॑ऽभूत्या । ए॒न॒म् । वि॒ध्या॒मि॒ । ग्राह्या॑ । ए॒न॒म् । वि॒ध्या॒मि॒ । तम॑सा । ए॒न॒म् । वि॒ध्या॒मि॒ ॥७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तेनैनंविध्याम्यभूत्यैनं विध्यामि निर्भूत्यैनं विध्यामि पराभूत्यैनं विध्यामिग्राह्यैनं विध्यामि तमसैनं विध्यामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तेन । एनम् । विध्यामि । अभूत्या । एनम् । विध्यामि । नि:ऽभूत्या । एनम् । विध्यामि । पराऽभूत्या । एनम् । विध्यामि । ग्राह्या । एनम् । विध्यामि । तमसा । एनम् । विध्यामि ॥७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 7; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (तेन) उस [ईश्वरनियम]से (एनम्) इस [कुमार्गी] को (अभूत्या) अभूति [असम्पत्ति] से (विध्यामि) मैंछेदता हूँ, (एनम्) इस को (निर्भूत्या) निर्भूति [हानि वा नाश] से (विध्यामि)छेदता हूँ, (एनम्) इस को (पराभूत्या) पराभूति [पराभव, हार] से (विध्यामि) छेदताहूँ, (एनम्) इस को (ग्राह्या) गठिया रोग से (विध्यामि) छेदता हूँ, (एनम्) इस को (तमसा) अन्धकार [महाक्लेश] से (विध्यामि) छेदता हूँ, (एनम्) इस [कुमार्गी] को [अन्य विपत्तियों से] (विध्यामि) मैं छेदता हूँ ॥१॥

    भावार्थ - कुमार्गी दुराचारी लोगईश्वरनियम से नाना विपत्तियाँ झेलते हैं ॥१॥

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