अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
परी॒मं सोम॒मायु॑षे म॒हे श्रोत्रा॑य धत्तन। यथै॑नं ज॒रसे॑ न॒यां ज्योक्श्रोत्रेऽधि॑ जागरत्॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑। इ॒मम्। सोम॑म्। आयु॑षे। म॒हे। श्रोत्रा॑य। ध॒त्त॒न॒। यथा॑। ए॒न॒म्। ज॒रसे॑। न॒याम्। ज्योक्। श्रोत्रे॑। अधि॑। जा॒ग॒र॒त् ॥२४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
परीमं सोममायुषे महे श्रोत्राय धत्तन। यथैनं जरसे नयां ज्योक्श्रोत्रेऽधि जागरत्॥
स्वर रहित पद पाठपरि। इमम्। सोमम्। आयुषे। महे। श्रोत्राय। धत्तन। यथा। एनम्। जरसे। नयाम्। ज्योक्। श्रोत्रे। अधि। जागरत् ॥२४.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 24; मन्त्र » 3
विषय - राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ -
[हे प्रजागणो !] (इमम्) इस (सोमम्) चन्द्रमा [समान शान्तिकारक पुरुष] को (महे) बड़े (आयुषे) जीवन के लिये और (श्रोत्राय) सुनवाई के लिये (परि) सब प्रकार (धत्तन) धारण करो। (यथा) जिससे (एनम्) इस [पुरुष] को (जरसे) स्तुति के लिये (नयाम्) मैं ले चलूँ, और वह (ज्योक्) बहुत काल तक (श्रोत्रे) सुनवाई में (अधि) अधिकारपूर्वक (जागरत्) जागता रहे ॥३॥
भावार्थ - प्रजागणों को उचित है कि जिस पुरुष को राजा बनावें, उससे सदा प्रीति रक्खें, जिससे वह स्तुति प्राप्त करके प्रजा के दुःखों को सदा सुने और दूर करे ॥३॥
टिप्पणी -
३−(सोमम्) चन्द्रसमानशान्तिप्रदं पुरुषम् (श्रोत्राय) श्रवणकरणाय (श्रोत्रे) श्रवणकरणे। अन्यत् पूर्ववत्-म०२॥