Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 18

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 18/ मन्त्र 7
    सूक्त - शुक्रः देवता - अपामार्गो वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त

    अ॑पामा॒र्गोऽप॑ मार्ष्टु क्षेत्रि॒यं श॒पथ॑श्च॒ यः। अपाह॑ यातुधा॒नीरप॒ सर्वा॑ अरा॒य्यः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पा॒मा॒र्ग: । अप॑ । मा॒र्ष्टु॒ । क्षे॒त्रि॒यम् । श॒पथ॑: । च॒ । य: ।अप॑ । अह॑ । या॒तु॒ऽधा॒नी: । अप॑ । सर्वा॑: । अ॒रा॒य्य᳡: ॥१८.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपामार्गोऽप मार्ष्टु क्षेत्रियं शपथश्च यः। अपाह यातुधानीरप सर्वा अराय्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपामार्ग: । अप । मार्ष्टु । क्षेत्रियम् । शपथ: । च । य: ।अप । अह । यातुऽधानी: । अप । सर्वा: । अराय्य: ॥१८.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 18; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (अपामार्गः) दोषों का शोधनेवाला राजा (क्षेत्रियम्) देह वा वंश के दोष को, (च) और (यः) जो कुछ (शपथः) दुर्वचन हो [उसे भी] (अप मार्ष्टु) शुद्ध कर देवे। (अह) अरे (यातुधानीः) यातना देनेवाली शत्रुसेनाओं को (अप=अप मार्ष्टु) शुद्ध कर डाले, और (सर्वाः) सब (अराय्यः=अरायीः) अलक्ष्मियों को (अप=अप मार्ष्टु) शुद्ध कर डाले ॥७॥

    भावार्थ - राजा अपनी सुनीति से प्रजा के दुःखों का नाश करके उनके स्वास्थ्य और धन की वृद्धि करे ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top