Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 137

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 137/ मन्त्र 1
    सूक्त - वीतहव्य देवता - नितत्नीवनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - केशवर्धन सूक्त

    यां ज॒मद॑ग्नि॒रख॑नद्दुहि॒त्रे के॑श॒वर्ध॑नीम्। तां वी॒तह॑व्य॒ आभ॑र॒दसि॑तस्य गृ॒हेभ्यः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । ज॒मत्ऽअ॑ग्नि:। अख॑नत् । दु॒हि॒त्रे । के॒श॒ऽवर्ध॑नीम् । ताम् । वी॒तऽह॑व्य: । आ । अ॒भ॒र॒त् । असि॑तस्य । गृ॒हेभ्य॑: ॥१३७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां जमदग्निरखनद्दुहित्रे केशवर्धनीम्। तां वीतहव्य आभरदसितस्य गृहेभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । जमत्ऽअग्नि:। अखनत् । दुहित्रे । केशऽवर्धनीम् । ताम् । वीतऽहव्य: । आ । अभरत् । असितस्य । गृहेभ्य: ॥१३७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 137; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (केशवर्धनीम्) केश बढ़ानेवाली (याम्) जिस [नितत्नी ओषधि] को (जमदग्निः) जलती अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष ने (दुहित्रे) पूर्ति करनेवाली क्रिया के लिये (अखनत्) खोदा है। (ताम्) उस [ओषधि] को (वीतहव्यः) पाने योग्य पदार्थ का पानेवाला ऋषि (असितस्य) मुक्तस्वभाव महात्मा के (गृहेभ्यः) घरों से (आ अभरत्) लाया है ॥१॥

    भावार्थ - इस सूक्त में (नितत्नी) पद की अनुवृत्ति गत सूक्त से आती है। जिस प्रकार से वैद्य जनपरम्परा से एक दूसरे के पीछे शिक्षा पाते चले आये हैं, वैसे ही मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते रहें ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top