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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 36
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत् गायत्री, स्वरः - षड्जः
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    परि॑ ते दू॒डभो॒ रथो॒ऽस्माँ२ऽअ॑श्नोतु वि॒श्वतः॑। येन॒ रक्ष॑सि दा॒शुषः॑॥३६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑। ते॒। दू॒डभः॑। दु॒र्दभ॒ऽइति॑ दुः॒ऽदभः॑। रथः॑। अ॒स्मान्। अ॒श्नो॒तु॒। वि॒श्वतः॑। येन॑। रक्ष॑सि। दा॒शुषः॑ ॥३६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि ते दूडभो रथो स्माँ अश्नोतु विश्वतः । येन रक्षसि दाशुषः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    परि। ते। दूडभः। दुर्दभऽइति दुःऽदभः। रथः। अस्मान्। अश्नोतु। विश्वतः। येन। रक्षसि। दाशुषः॥३६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 36
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    भावार्थ - विज्ञान प्राप्त व्हावे यासाठी माणसांनी सर्वांचा रक्षणकर्ता व विज्ञानदाता अशा परमेश्वराची प्रार्थना करून सदैव पुरुषार्थ करावा, ज्यामुळे माणसांची अविद्या, अधर्म इत्यादी दोष नष्ट होऊन उत्तम विद्या, धर्म इत्यादी शुभ गुण प्राप्त होऊन सदैव सुख मिळेल.

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