ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 52/ मन्त्र 9
अस्ता॑वि॒ मन्म॑ पू॒र्व्यं ब्रह्मेन्द्रा॑य वोचत । पू॒र्वीॠ॒तस्य॑ बृह॒तीर॑नूषत स्तो॒तुर्मे॒धा अ॑सृक्षत ॥
स्वर सहित पद पाठअस्ता॑वि । मन्म॑ । पू॒र्व्यम् । ब्रह्म॑ । इन्द्रा॑य । वो॒च॒त॒ । पू॒र्वीः । ऋ॒तस्य॑ । बृ॒ह॒तीः । अ॒नू॒ष॒त॒ । स्तो॒तुः । मे॒धाः । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्तावि मन्म पूर्व्यं ब्रह्मेन्द्राय वोचत । पूर्वीॠतस्य बृहतीरनूषत स्तोतुर्मेधा असृक्षत ॥
स्वर रहित पद पाठअस्तावि । मन्म । पूर्व्यम् । ब्रह्म । इन्द्राय । वोचत । पूर्वीः । ऋतस्य । बृहतीः । अनूषत । स्तोतुः । मेधाः । असृक्षत ॥ ८.५२.९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 52; मन्त्र » 9
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
पदार्थ -
(मन्म) मननयोग्य (पूयम्) सनातन (ब्रह्म) वेदज्ञान (अस्तावि) स्तुति से सिद्ध किया गया है, उसका (इन्द्राय) ऐश्वर्य की साधना कर रहे जीवात्मा को (वोचत) उपदेश दो। (ऋतस्य) परमसत्य या यथार्थ का ज्ञान देने वाली (पूर्वीः) सनातन (बृहतीः) बृहत् ऋचाओं के द्वारा (अनूषत) वन्दना करें। इस तरह (स्तोतुः) स्तोता की (मेधा) बुद्धिशक्ति की (असृक्षत) रचना होती है॥९॥
भावार्थ - विधिसहित भगवान् की स्तुति से साधक के हृदय में प्रभु के गुणों का आधान होता है और वह सर्व प्रकार समृद्ध होता है। इस मन्त्र में कहा गया है कि स्तुति के उपयुक्त शब्द सनातन वेद के शब्द हैं; उन्हीं का विधिपूर्वक पाठ करो॥९॥
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