Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 69 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 69/ मन्त्र 18
    ऋषिः - प्रियमेधः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्बृहती स्वरः - मध्यमः

    अनु॑ प्र॒त्नस्यौक॑सः प्रि॒यमे॑धास एषाम् । पूर्वा॒मनु॒ प्रय॑तिं वृ॒क्तब॑र्हिषो हि॒तप्र॑यस आशत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑ । प्र॒त्नस्य॑ । ओक॑सः । प्रि॒यऽमे॑धासः । ए॒षा॒म् । पूर्वा॑म् । अनु॑ । प्रऽय॑तिम् । वृ॒क्तऽब॑र्हिषः । हि॒तऽप्र॑यसः । आ॒श॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनु प्रत्नस्यौकसः प्रियमेधास एषाम् । पूर्वामनु प्रयतिं वृक्तबर्हिषो हितप्रयस आशत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनु । प्रत्नस्य । ओकसः । प्रियऽमेधासः । एषाम् । पूर्वाम् । अनु । प्रऽयतिम् । वृक्तऽबर्हिषः । हितऽप्रयसः । आशत ॥ ८.६९.१८

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 69; मन्त्र » 18
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    (एषाम्) आज्ञानुवर्ती साधकों में से जो (प्रियमेधासः) धारणावती बुद्धि चाहते हैं वे अपने (पूर्वाम्) पूर्ववर्ती (प्रयति) संकल्प के (अनु) अनुसार (वृक्तबर्हिषः) जिन्होंने अपने हृदय रूपी अन्तरिक्ष को स्वच्छ किया हो वे, तथा जो (हितप्रयसः) सुखवाले हैं, उन्होंने (प्रत्नस्य ओकसः=प्रत्नं ओक) अपने बहुत पुराने निवास स्थान की [स्वर्गलोक को] सुखमयी स्थिति को (आशत) पा लिया॥१८॥

    भावार्थ - स्वर्ग का अर्थ है सुखमय व लोक का अर्थ है स्थान या स्थिति। सुखमयी स्थिति है ब्राह्मी स्थिति। इसकी प्राप्ति का उपाय इस मन्त्र में बताया है कि इस की प्राप्ति का संकल्प कर अपने अन्तःकरण को स्वच्छ करे। स्वच्छ अन्तःकरण में ही परमेश्वर होते हैं--इसी का नाम सुखमयी स्थिति है॥१८॥ अष्टम मण्डल में उनहत्तरवाँ सूक्त व सातवाँ वर्ग समाप्त॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top