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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 82 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 82/ मन्त्र 5
    ऋषिः - कुसीदी काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तुभ्या॒यमद्रि॑भिः सु॒तो गोभि॑: श्री॒तो मदा॑य॒ कम् । प्र सोम॑ इन्द्र हूयते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तुभ्य॑ । अ॒यम् । अद्रि॑ऽभिः । सु॒तः । गोभिः॑ । श्री॒तः । मदा॑य । कम् । प्र । सोमः॑ । इ॒न्द्र॒ । हू॒य॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तुभ्यायमद्रिभिः सुतो गोभि: श्रीतो मदाय कम् । प्र सोम इन्द्र हूयते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तुभ्य । अयम् । अद्रिऽभिः । सुतः । गोभिः । श्रीतः । मदाय । कम् । प्र । सोमः । इन्द्र । हूयते ॥ ८.८२.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 82; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 1; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    हे (इन्द्र) ऐश्वर्य इच्छुक! (अयम्) यह (अद्रिभिः) आदरणीय विद्वानों के द्वारा (सुतः) विद्या व सुशिक्षा द्वारा निष्पादित (गोभिः) ज्ञानविज्ञान आदि से (श्रीतः) परिष्कृत-संस्कृत (कम्) सुखपूर्वक (मदाय) हर्ष देने वाले होने के प्रयोजन से (सोमः) ऐश्वर्यप्रद, प्रभु के द्वारा रचित पदार्थ-समूह (तुभ्य=तुभ्यम्) तेरे लिये (प्र, हूयते) [उपर्युक्त ज्ञानयज्ञ में] हवि बनाया जा रहा है; तू इससे लाभ प्राप्त कर॥५॥

    भावार्थ - विद्वान् विद्या व सुशिक्षा के द्वारा प्रभु के द्वारा सृष्ट ऐश्वर्यप्रद पदार्थों का सारभूत ज्ञानरस निकालते हैं; उस ज्ञानरूपी रस को ज्ञान-यज्ञ में सबके हितार्थ हवि बनाते हैं। इसका लाभ साधक उठाएं॥५॥

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