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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 82 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 82/ मन्त्र 7
    ऋषिः - कुसीदी काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    य इ॑न्द्र चम॒सेष्वा सोम॑श्च॒मूषु॑ ते सु॒तः । पिबेद॑स्य॒ त्वमी॑शिषे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । इ॒न्द्र॒ । च॒म॒सेषु॑ । आ । सोमः॑ । च॒मूषु॑ । ते॒ । सु॒तः । पिब॑ । इत् । अ॒स्य॒ । त्वम् । ई॒शि॒षे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य इन्द्र चमसेष्वा सोमश्चमूषु ते सुतः । पिबेदस्य त्वमीशिषे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । इन्द्र । चमसेषु । आ । सोमः । चमूषु । ते । सुतः । पिब । इत् । अस्य । त्वम् । ईशिषे ॥ ८.८२.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 82; मन्त्र » 7
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 2; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    हे (इन्द्र) इन्द्र! (यः सुतः सोमः) विद्वानों के द्वारा विद्या व सुशिक्षा से निष्पादित जो प्रभु सृष्टि के पदार्थों का सारभूत पदार्थबोध (ते) तेरी (चमसेषु) पाँच ज्ञानेन्द्रियों एवं मन तथा बुद्धिरूप चमसों को लक्ष्य कर तथा (चमूषु) शत्रुओं व शत्रुभूत भावनाओं के बल को पी जानेवाली कर्मेन्द्रियों को लक्ष्य करके (सुतः) निष्पन्न किया है, उसको तू (पिबेत्) आत्मसात् कर; (अस्य) इस सारे पदार्थ बोध का (त्वम्) तू (ईशिषे) स्वामी है॥७॥

    भावार्थ - प्रभु के द्वारा सृष्ट ऐश्वर्यसाधक पदार्थों का जो बोध विद्वान् गुरु साधक को देते हैं, साधक उसे आत्मसात् कर ले--ऐसा करने में वह भली-भाँति सक्षम है।॥७॥

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