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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 85/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कृष्णः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इ॒मं मे॒ स्तोम॑मश्विने॒मं मे॑ शृणुतं॒ हव॑म् । मध्व॒: सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम् । मे॒ । स्तोम॑म् । अ॒श्वि॒ना॒ । इ॒मम् । मे॒ । शृ॒णु॒त॒म् । हव॑म् । मध्वः॑ । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमं मे स्तोममश्विनेमं मे शृणुतं हवम् । मध्व: सोमस्य पीतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमम् । मे । स्तोमम् । अश्विना । इमम् । मे । शृणुतम् । हवम् । मध्वः । सोमस्य । पीतये ॥ ८.८५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 85; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [साधक आचार्य गुरु शिष्यों से कहता है] हे (अश्विनौ) अध्यापक व अध्येता युगल'। (मध्वः) माधुर्य आदि गुणयुक्त (सोमस्य) ऐश्वर्यकारक शास्त्रबोध का पान करने हेतु (इमं मे) इस मेरे द्वारा किये जा रहे (स्तोमम्) पदार्थों के गुणों की व्याख्यासमूहरूप (हवम्) उपदेश का (शृणुतम्) श्रवण करो॥२॥

    भावार्थ - गुरु व शिष्य भी अपने से बड़े आचार्य के मुख से प्रभु सृष्टि के पदार्थों के गुण सुनकर उन्हें आत्मसात् करें॥२॥

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