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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 88 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 88/ मन्त्र 2
    ऋषिः - नोधा देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    द्यु॒क्षं सु॒दानुं॒ तवि॑षीभि॒रावृ॑तं गि॒रिं न पु॑रु॒भोज॑सम् । क्षु॒मन्तं॒ वाजं॑ श॒तिनं॑ सह॒स्रिणं॑ म॒क्षू गोम॑न्तमीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यु॒क्षम् । सु॒ऽदानु॑म् । तवि॑षीभिः । आऽवृ॑तम् । गि॒रिम् । न । पु॒रु॒ऽभोज॑सम् । क्षु॒ऽमन्त॑म् । वाज॑म् । श॒तिन॑म् । स॒ह॒स्रिण॑म् । म॒क्षु । गोऽम॑न्तम् । ई॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्युक्षं सुदानुं तविषीभिरावृतं गिरिं न पुरुभोजसम् । क्षुमन्तं वाजं शतिनं सहस्रिणं मक्षू गोमन्तमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्युक्षम् । सुऽदानुम् । तविषीभिः । आऽवृतम् । गिरिम् । न । पुरुऽभोजसम् । क्षुऽमन्तम् । वाजम् । शतिनम् । सहस्रिणम् । मक्षु । गोऽमन्तम् । ईमहे ॥ ८.८८.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 88; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 11; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    हम उस वाज-अन्न, धनादि ऐश्वर्य के (मक्षु) शीघ्र (ईमहे) इच्छुक हैं कि जो (द्युक्षम्) दिव्यता में निवास करे; (सुदानुम्) उत्तम दानशीलतादायक हो; (तविषीभिः) नाना प्रकार की शक्ति से (आवृतम्) आच्छादित या परिपूर्ण हो; (गिरिम्) मेघ के (न) तुल्य (पुरुभोजसम्) विशाल पालन शक्ति से भरा-पूरा हो; (क्षुमन्तम्) प्रशस्त योगशक्तियुक्त हो; (शतिनं सहस्रिणम्) सैकड़ों-हजारों के लिए लाभदायक हो॥२॥

    भावार्थ - यहाँ उस दिव्य ऐश्वर्य की प्रार्थना या आकांक्षा करने का उपदेश है कि जो मानव को दिव्य बनाए; प्रशस्त भोग शक्ति दे; जिसके सहारे साधक सैकड़ों-हजारों का पालन-पोषण करने में समर्थ हो॥२॥

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