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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 89 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 89/ मन्त्र 1
    ऋषिः - नृमेधपुरुमेधौ देवता - इन्द्र: छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः

    बृ॒हदिन्द्रा॑य गायत॒ मरु॑तो वृत्र॒हन्त॑मम् । येन॒ ज्योति॒रज॑नयन्नृता॒वृधो॑ दे॒वं दे॒वाय॒ जागृ॑वि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृ॒हत् । इन्द्रा॑य । गा॒य॒त॒ । मरु॑तः । वृ॒त्र॒हम्ऽत॑मम् । येन॑ । ज्योतिः॑ । अज॑नयन् । ऋ॒त॒ऽवृधः॑ । दे॒वम् । दे॒वाय॑ । जागृ॑वि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहदिन्द्राय गायत मरुतो वृत्रहन्तमम् । येन ज्योतिरजनयन्नृतावृधो देवं देवाय जागृवि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहत् । इन्द्राय । गायत । मरुतः । वृत्रहम्ऽतमम् । येन । ज्योतिः । अजनयन् । ऋतऽवृधः । देवम् । देवाय । जागृवि ॥ ८.८९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 89; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    हे (मरुतः) विद्वज्जन! (इन्द्राय) ऐश्वर्यवान् प्रभु के प्रति (वृत्रहन्तमम्) अज्ञाननाश हेतु श्रेष्ठतम अथवा मेघहन्ता सूर्य के तुल्य अतिशय प्रभावशाली (बृहत्) बृहत् साम का (गायत) गायन करोः बृहत् साम के द्वारा परमेश्वर के गुण गाओ; इस गायन से (ऋतावृधः) सनातन नियमों को बढ़ाने वाले विद्वान् (देवाय) दिव्यता का आधान करने के लिये (देवम्) दिव्य सुख दाता (जागृवि) जागरूक अर्थात् अतिप्रसिद्ध (ज्योतिः) ज्योति को (अजनयन्) प्रकटते हैं॥१॥

    भावार्थ - मानव के लिये उचित है कि सर्वदा युक्त आहार-विहार के द्वारा शारीरिक व आत्मिक विघ्न-बाधाओं को दूर करते हुए प्रभु के गुणों का कीर्तन बृहत् सामगान से करें॥१॥

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